Babri Masjid की ज़मीन के भीतर के राज: कनिंघम से लेकर ASI रिपोर्ट तक का सफ़र
भूमिका
बाबरी मस्जिद का मुद्दा भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है, जिसमें धर्म, राजनीति, और पुरातात्विक शोध का मिश्रण है। यह मुद्दा केवल एक मस्जिद या मंदिर का नहीं है, बल्कि यह भारत के साम्प्रदायिकता और एकता के प्रश्नों से भी गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। बाबरी मस्जिद की ज़मीन के नीचे क्या था, इस पर कई दशकों से बहस जारी है। कनिंघम से लेकर हालिया एएसआई (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) रिपोर्ट तक के अध्ययन ने इस स्थान की ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व को उजागर करने का प्रयास किया है।
कनिंघम की खोज
सर अलेक्जेंडर कनिंघम, जो भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के संस्थापक माने जाते हैं, ने 19वीं सदी में अयोध्या का दौरा किया। उनके अध्ययन में यह पाया गया कि यह स्थान प्राचीन काल से महत्वपूर्ण धार्मिक और ऐतिहासिक केंद्र रहा है। कनिंघम ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि यहाँ पर कई पुरानी इमारतों के अवशेष पाए गए, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि अयोध्या का यह क्षेत्र प्राचीन भारतीय सभ्यता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।
एएसआई की रिपोर्ट
1980 के दशक से बाबरी मस्जिद के नीचे की जमीन की जांच की मांग तेज हो गई थी। 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद, इस विवादित स्थल की पुरातात्विक खुदाई की आवश्यकता और बढ़ गई। 2003 में इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर एएसआई ने यहां खुदाई शुरू की। एएसआई की रिपोर्ट ने इस स्थल के इतिहास को नई दृष्टि से देखने का अवसर प्रदान किया।
एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में उल्लेख किया कि मस्जिद के नीचे एक विशाल संरचना के अवशेष पाए गए। इस संरचना के अवशेषों में स्तंभ, नींव की दीवारें और कई अन्य पुरातात्विक सामग्री शामिल थीं, जो स्पष्ट रूप से एक प्राचीन धार्मिक स्थल का संकेत देती हैं। एएसआई की इस रिपोर्ट ने बाबरी मस्जिद विवाद को और अधिक जटिल बना दिया।
विवाद और निष्कर्ष
एएसआई की रिपोर्ट पर विवाद और आलोचना दोनों ही हुए। कुछ विशेषज्ञों ने इसे सांप्रदायिक एजेंडे को बढ़ावा देने वाला बताया, जबकि अन्य ने इसे एक निष्पक्ष और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तैयार की गई रिपोर्ट माना। एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया कि यह स्थल एक प्राचीन धार्मिक स्थल था, जिसमें संभवतः एक मंदिर था, जिसे बाद में तोड़कर मस्जिद का निर्माण किया गया।
ऐतिहासिक और धार्मिक संदर्भ
अयोध्या का उल्लेख रामायण, महाभारत और कई अन्य प्राचीन ग्रंथों में मिलता है। हिंदू धर्म में इसे भगवान राम की जन्मस्थली के रूप में मान्यता प्राप्त है। वहीं, मुस्लिम समुदाय के लिए बाबरी मस्जिद एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल रहा है। 1528 में मीर बाकी ने इसे बनवाया था और तब से यह मस्जिद यहां कायम रही।
पुरातात्विक साक्ष्य
एएसआई की खुदाई में पाए गए स्तंभ और अन्य अवशेष इस बात का प्रमाण थे कि यहां पहले एक बड़ा निर्माण था। रिपोर्ट में कहा गया कि मस्जिद की नींव में इस्तेमाल किए गए स्तंभों पर हिंदू धर्म से संबंधित नक्काशियाँ थीं। इसके अतिरिक्त, मंदिर की नींव के नीचे से भी कई पुरातात्विक सामग्री प्राप्त हुईं, जो इस स्थल की प्राचीनता को दर्शाती हैं।
न्यायालय का निर्णय
2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में विवादित भूमि को तीन भागों में बांटने का आदेश दिया। कोर्ट ने एएसआई की रिपोर्ट को आधार बनाकर यह माना कि विवादित स्थल के नीचे एक प्राचीन संरचना थी, जिसे मंदिर के रूप में माना जा सकता है। इस फैसले ने एक तरफ हिंदू समुदाय को विवादित स्थल पर राम मंदिर बनाने की अनुमति दी, तो दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय को मस्जिद के लिए अलग भूमि आवंटित की।
राजनीतिक प्रभाव
बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद ने भारतीय राजनीति को भी गहरे रूप से प्रभावित किया है। 1990 के दशक में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस मुद्दे को अपने प्रमुख एजेंडे के रूप में अपनाया और इसके बल पर उन्होंने बड़ी राजनीतिक सफलता हासिल की। इस मुद्दे ने देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को भी बढ़ावा दिया, जिससे कई दंगों और हिंसक घटनाओं की नींव पड़ी।
सामाजिक प्रभाव
बाबरी मस्जिद विवाद ने भारतीय समाज में साम्प्रदायिकता की खाई को और गहरा कर दिया है। इस विवाद ने न केवल धार्मिक समुदायों के बीच अविश्वास और दुश्मनी को बढ़ाया, बल्कि इससे देश के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने को भी नुकसान पहुंचा है। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए दंगों ने कई निर्दोष लोगों की जान ली और देश में अस्थिरता का माहौल पैदा किया।
वर्तमान परिप्रेक्ष्य
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में विवादित भूमि को राम मंदिर निर्माण के लिए हिंदू पक्ष को सौंपने का आदेश दिया। साथ ही मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन मस्जिद निर्माण के लिए देने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने विवाद का कानूनी रूप से अंत कर दिया, लेकिन सामाजिक और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण अभी भी एक चुनौती बना हुआ है।
निष्कर्ष
बाबरी मस्जिद की जमीन के नीचे की खोज, कनिंघम से लेकर एएसआई की रिपोर्ट तक, एक लंबी और जटिल प्रक्रिया रही है। इसने भारतीय इतिहास और पुरातत्व को नई दृष्टि से समझने का अवसर प्रदान किया है। इस विवाद ने न केवल ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को उजागर किया है, बल्कि भारतीय समाज और राजनीति को भी गहरे रूप से प्रभावित किया है। भविष्य में, इस मुद्दे से जुड़े सभी पक्षों को मिलकर सांप्रदायिक सौहार्द और एकता को बनाए रखने के प्रयास करने होंगे, ताकि देश में शांति और समृद्धि बनी रहे।