हाथों में बंदूक सर पर काला पट्टा पीठ पर गोला बारूद से भरा बैग और दिल में देश को हर खतरे से बचाने की आग यह है ब्लैक कैट कमांडो जो मौत से भी नहीं डरते क्या जमीन क्या आसमान और क्या हवा इंडिया की यह स्पेशलाइज टुकड़ी हर पल किसी भी खतरे से लड़ने को तैयार रहती है बात चाहे देश की सुरक्षा की हो या फिर किसी वीवीआईपी सुरक्षा की इनका निशाना कभी नहीं चूकता एनएसडी के यह कमांडोज केवल एक ही मंत्र के लिए काम करते हैं और वो है सर्वत्र सर्वोत्तम सुरक्षा इसके लिए फिर चाहे उन्हें मौत को गले लगाना पड़े या दुश्मन के घर में घुसकर उसे मारना पड़े अब सवाल यहां पर यह आता है कि कौन है यह कमांडो जो भट्टी से तपक तैयार किए जाते हैं कैसे उन्हें कभी ना हारने की टफेस्ट ट्रेनिंग दी जाती है क्या दुनिया में इस खतरनाक टुकड़ी की भी कोई काट है या फिर इनके जज्बे के आगे अच्छे खासे कमांडर भी ढेर हो जाते हैं चलिए जानते हैं [संगीत] देखिए चीता की स्पीड से भी तेज और युद्ध के लिए हमेशा तैयार इन ब्लैक कमांडोज को देख रहे हैं आप यह है नेशनल सिक्योरिटी गार्ड्स देश के खिलाफ होने वाली हर टेरर एक्टिविटीज को यह ध्वस्त करते हैं और इंटरनल डिस्टरबेंसस को भी खत्म करने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं

जहां इन्हें इंफोर्स किया जाता है वहां से यह फिर जीत का लोहा लेकर ही बाहर निकलते हैं दिखने में ये जितने कूल लगते हैं उतनी ही मुश्किल इनकी जॉब भी होती है जंगल आसमान और कई फीट की ऊंचाई पर ऑपरेशन को अंजाम देना पड़ता है इस बीच कभी इनका मुकाबला नेचर की कड़ी परेशानियों से होता है तो कभी खूंखार मिलिटेंट ग्रुप इनके रास्ते में आते हैं और तब इनके काम आती है वो कड़ी ट्रेनिंग जहां इन्हें नर्क से भी बदतर हालातों में रहने के लिए ट्रेन किया जाता है आई एम श्यर कि यह सब देखने और जानने के बाद हर देशभक्त यह जरूर सोचता है कि वो भी ब्लैक कैट कमांडो एनएसजी बनेगा और खतरे से खेलते हुए देश को बचाएगा बट एक ब्लैक कैट कमांडो बनना कोई इतना आसान काम नहीं होता इसके लिए बॉडी एकदम फिट होनी चाहिए इरादे मजबूत और दूसरों को बचाने का जज्बा होना चाहिए और यहां तक पहुंचने के लिए भी ऐसे कड़े टेस्ट देने होते हैं जो भारत के सभी टॉप टेस्ट को फेल कर देते हैं लेकिन ये बताने से पहले हम आपको यह बता द कि आखिर ब्लैक कैट कमांडो के फॉर्मेशन की जरूरत ही क्यों मह मूस हुई पहले भी तो भारत के पास इतने हाईली क्वालिफाइड कमांडोज थे तो एनएससी को बनाया ही क्यों गया वले इसके इंफॉर्मेशन की कड़ियां उस इंसीडेंट से जा मिलती हैं जिसने भारत की राजनीति की नीव तक हिलाक रख दी थी हम बात कर रहे हैं 1984 में पंजाब के अमृतसर में कोल्डन टेंपल पर हमले की जिसमें करीब 83 सैनिक और 500 नागरिकों की मौत हुई थी जबकि इस हमले में सैकड़ों लोग घायल हुए थे हालांकि भारतीय सेना के जाबाज ने 3 जून से 6 जून 1984 तक ऑपरेशन ब्लू स्टार चला कर हालात पर जरूर काबू पा लिया था लेकिन आने वाले समय में इस तरह के हालात फिर से पैदा ना हो इसके लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार को महसूस हुआ कि भाई एक ऐसे कमांडोज भारत के पास होने चाहिए जिन्हें कोई ना भेज सके और यहीं से शुरुआत होती है

ब्लैक कैट कमांडो यानी नेशनल सिक्योरिटी गार्ड एनएससी के फॉर्मेशन की कहानी ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद एनएससी के गठन में और भी तेजी देखने को मिली और 22 सितंबर 1986 को पूरी तरह एनएससी का गठन कर दिया गया और जब इसकी शुरुआत हुई तो फैसला लिया गया कि इन फोर्स का इस्तेमाल सिर्फ उन हालातों में होगा जहां पर दूसरी डिफेंस फोर्स का काम करना संभव नहीं होगा हालांकि आगे चलकर एनएसटी के कामों में कई तरह के बदलाव किए गए लेकिन अपने काम को बिल्कुल सही तरीके से एक्शन लेने के लिए एनएससी को दो भागों में बांट दिया गया पहला एसजी यानी स्पेशल एक्शन ग्रुप और दूसरा एसआरजी यानी स्पेशल रेंजर ग्रुप आज एसजी को उन ऑपरेशंस पर भेजा जाता है जहां तुरंत एक्शन लेने की जरूरत हो होती है वहीं दूसरी ओर एसआरजी का काम देश के अहम और वीवीआईपी लोगों की सुरक्षा करना होता है लेकिन जरूरत के हिसाब से एनएसजी के यह दोनों ही ग्रुप्स जब चाहे अपने काम को एक्सचेंज भी कर सकते हैं खैर अब यह तो हुई एनएससी की गठन की बात आइए अब हम जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर इन कमांडो का चयन कैसे होता है और इनकी ट्रेनिंग किस तरह की होती है एनएसजी गृह मंत्रालय के तहत सात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल में से एक है

भारत के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सुरक्षा और आतंकवादी हमलों से बचाव का जिम्मा एनएससी का ही होता है एनएससी कमांडो हमेशा काले कपड़े काले नकाब और काले के ही सामान का इस्तेमाल करते हैं इसलिए इन्हें ब्लैक कैट कमांडो भी कहा जाता है इनकी ट्रेनिंग बहुत कठिन होती है और इस ट्रेनिंग के लिए उनका चयन कई चरणों से होकर गुजरता है एनएसज में कमांडो बनने के लिए किसी भी तरह की सीधी भर्ती नहीं होती बल्कि इसके लिए भारतीय सेना और अर्ध सैनिक बलों के जाबाज जवानों को चुना जाता है एनएससी में चुने जाने वाले कमांडोज में 53 पर कमांडो भारतीय सेना से ही आते हैं जी हां जबकि 45 पर कमांडोज चार पैरामिलिट्री फोर्सेस सीआरपीएफ आईटीबीपी आरएएस और बीएसएफ से चुने जाते हैं इसके लिए एज 35 साल से ज्यादा नहीं होनी चाहिए और 10 साल का एक्सपीरियंस भी चाहिए अब इतना सब कुछ होने के बाद यह जाबास जवान ट्रेनिंग के लिए मानेसर के एनएससी ट्रेनिंग सेंटर पहुंचते हैं यह देश के सबसे जाबास सैनिक होते हैं लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि ट्रेनिंग सेंटर पहुंचने के बाद भी यह कमांडो बन जाए क्योंकि 90 दि की ट्रेनिंग से पहले भी सात दिनों की एक ऐसी ट्रेनिंग होती है जिसमें 15 से 20 प्र सैनिक अपनी मंजिल तक पहुंचने से पहले ही बाहर हो जाते हैं लेकिन 7त दिनों की ट्रेनिंग में जो जवान टिक जाते हैं उन्हें अगले 90 दिनों की ट्रेनिंग के लिए आगे भेज दिया जाता है और इस ट्रेनिंग को पूरा कर लेने के बाद उन्हें देश के सबसे ताकतवर कमांडोज में शामिल कर लिया जाता है यह कमांडो आखिर में साइकोलॉजिकल टेस्ट से भी गुजरते हैं जिसे पास करना बहुत जरूरी होता है ट्रेनिंग में सबसे पहले फिजिकल और मेंटल टेस्ट होता है 12 सप्ताह तक चल लने वाले यह सबसे कठिन ट्रेनिंग होती है इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जहां शुरुआत में इन जवानों के अंदर फिटनेस महज 30 से 40 प्र तक होती है वहीं ट्रेनिंग खत्म होने तक 80 से 90 प्र तक हो जाती है और ऐसा इसलिए संभव हो पाता है क्योंकि ट्रेनिंग में बहुत ही कड़ी एक्सरसाइज करवाई जाती हैं ताकि यह शारीरिक रूप से मजबूत हो सके और मुश्किल हालात में क्विक एक्शन ले सके जवानों को जिगजैग रन की ट्रेनिंग भी दी जाती है और 60 मीटर की स्प्रिंट के लिए इन्हें सिर्फ 11 से 13 सेकंड का समय दिया जाता है और 100 मीटर की स्प्रिंट के लिए सिर्फ 15 सेकंड का ही समय दिया जाता है और इसके साथ ही इनकी ट्रेनिंग को और ज्यादा कठिन बनाने के लिए हाथों में हथियार और पीठ पर वजन भी लाज दिया जाता है रस्सी के सहारे एक जगह से दूसरी जगह पर जाना भी

ट्रेनिंग का एक जरूरी हिस्सा होता है वहीं इन जवानों का कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए इन्हें 9 फीट के गड्ढे को पार करना होता है किसी मिशन पर जाते समय ना जाने कैसी स्थिति सामने आ जाए इससे निपटने के लिए हाई बैलेंस भी कराया जाता है पैरेलल रोप के जरिए इनकी बॉडी को और ज्यादा मजबूत बनाया जाता है वहीं रस्सी के सहारे चढ़कर 26 फीट ऊंची दीवार को फांद भी जरूरी होता है साहब साथ ही 60 फीट ऊंची दीवार पर चढ़ने की यह पेशेंस इन जवानों को पहाड़ पर चढ़ने का एहसास कराती है आसमान से सीधा किसी कमरे में घुसना हो तो उसके लिए भी इन्हें खास ट्रेनिंग दी जाती है इसके बाद बारी आती है एक्शन की भले इनके हाथों में हथियार ना हो लेकिन य दुश्मन को मार गिराने की ताकत जरूर रखते हैं इनके लिए इन्हें मार्शल आर्ट के कई गुण सिखाए जाते हैं दुश्मन के हाथों से चाकू छीनकर कैसे उसका गला काटना है यह खतरनाक तरीका भी सिखाया जाता है वहीं किसी प्लेन के हाईजैक हो जाने के हालत में उससे कैसे निपटना है इसके लिए भी ट्रेनिंग दी जाती है एनजी कमांडो को एक गोली से एक जान लेने की भी ट्रेनिंग दी जाती है यानी यह कहा जाए कि हो सकता है कि आपातकालीन हालत में यह कमांडो सिर्फ एक गोली चलाकर किसी आतंकवादी को ढेर कर सकते हैं वहीं इन कमांडो को आंख बंद करके निशाना लगाने अंधेरे में निशाना लगाने और बहुत ही कम रोशनी में निशाना लगाना भी सिखाया जाता है इतना ही नहीं इनको आग के बीच से गुजरते हुए मुकाबला करने और गोलियों की बौछार के बीच में गुजर कर अपना मिशन पूरा करने के लिए भी तैयार किया जाता है साथ ही हथियार के साथ और हथियार के बिना दोनों तरह से मुकाबले की ट्रेनिंग दी जाती है और जैसे कि ड्राइविंग एनएसजी की सिक्योरिटी सिस्टम का सबसे जरूरी अंग होता है तो इसके लिए इन जवानों में से एक्सपर्ट ड्राइवर्स चुनने के लिए एक अलग से प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसके लिए इनको खतरनाक रास्तों बारूदी सुरंग वाले रास्तों हम लावर से घिर जाने की स्थिति में ड्राइविंग की ट्रेनिंग दी जाती है और तो और देश का इकलौता नेशनल बॉम डेटा सेंटर भी एनएसटी के पास है इसमें सेंटर में आतंकवादियों की तरफ से किए गए बम धमाकों और अलग-अलग आतंकी गुटों के हमला करने के तरीकों पर रिसर्च की जाती है एनएसी को आतंकवादी हमलों की स्थिति में आतंकवादियों पर काबू पाना बंधक बनाए गए लोगों को छुड़ाना बम की पहचान कर उसे डिफ्यूज करना जैसे कई चीजों की ट्रेनिंग दी जाती है साहब और आपको य जानकर हैरानी होगी कि इतनी क ट्रेनिंग से गुजरने के बाद भी इन कमांडो की मैक्सिमम वर्क सर्विस तकरीबन तीन से 5 साल तक ही होती है और 5 साल भी सिर्फ 15 से 20 प्र को ही रखा जाता है बाकी कमांडो के 3 साल पूरे होते ही उन्हें उनकी मूल फोर्सेस में वापस भेज दिया जाता है तो दोस्तों अब तो आप समझ गए होंगे कि एनएसज कमांडो बनना इतना आसान भी नहीं होता है क्योंकि यह कोई बच्चों का खेल नहीं है और जैसे किसी लोहे को कोई आकार देने के लिए पहले आग में तपाया जाता है ठीक उसी तरह एक एनजी कमांडो बनने के लिए इन जवानों को रूह कपा देने वाली ट्रेनिंग से होकर गुजरना भी पड़ता है जिससे आप इनकी काबिलियत का अंदाजा खुद ही लगा सकते हैं और यही कारण है कि एनएसजी ना केवल एशिया की बल्कि पूरी दुनिया की सबसे खतरनाक स्पेशल फोर्स में से एक मानी जाती है जो अपने गठन से लेकर आज तक ऑपरेशन ब्लैक थंडर ऑपरेशन ब्लैक हॉक ऑपरेशन माउस ट्रैप ऑपरेशन अश्वमेध ऑपरेशन वज्र शक्ति मुंबई अटैक जैसे और कई ऑपरेशंस को अंजाम दे चुके हैं और ज्यादातर ं में इनका सक्सेस रेट 90 से 100% तक रहा है यहां तक कि जब पंजाब में पठानकोट एयर बेस में कुछ घुस पैट घुस आए थे तो उन्हें ढेर करने के लिए भी 300 एनएसज कमांडर को बुलाया गया था हालांकि इस पूरे ऑपरेशन में कुछ एनएसज कमांडो भी घायल हुए लेकिन आखिरकार जीत भारत की इस खूं का टुकड़ी के हाथों में ही आई थी यही कारण है कि काली पोशाक में जब यह कमांडो देखते हैं तो इन्हें देखकर भी दिल में जो एक सुरक्षा की भावना पैदा होती है उसे शब्दों में बया नहीं किया जा सकता और ऐसा लगता है कि जब हमारे देश में ऐसे शूरवीर कमांडो मौजूद हैं तो फिर किसी की क्या मजाल है कि हमारे देश की ओर नजर उठाकर देखने की सुरत भी कर सके एनएससी कमांडो की जॉब इतनी टफ होती है कि उतनी ही शानदार इनकी सैलरी भी होती है इन्हें प्रति माह 84000 से लेकर ₹ लाख तक की सैलरी मिलती है वहीं इनकी एवरेज सैलरी पर मंथ लगभग ₹ लाख होती है वैसे आपको बता दें कि इनकी सैलरी में डिफरेंस इनकी फील्ड अपॉइंटमेंट पर भी काफी डिपेंड होता है एनएसज में ऑपरेशन ड्यूटी पर आने वाले ऑफिसर्स को ₹2000000 नॉन ऑपरेशनल ड्यूटी करने वाले जवानों को सालाना ₹2500000 दास्ता |

By Naveen

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