आखिर भारत दुनिया भर का कचरा क्यों खरीद रहा है?…ऐसी क्या वजह है की दुनिया की लगभग 25 देश हजारों टन कचरा बेच रहे है भारत को?…भारत में इतने कचरे मौजूद होते हुए भी दुनिया भर की गंदगी मंगवाने की क्या जरूरत है?….भारत इस कचरे से क्या करता है?…क्या है भारत में आने वाले कचरे का असली सच?….
दोस्तों हमारे भारत देश की आबादी कितनी ज्यादा है आप जानते ही हैं। जितनी ज्यादा यहां की आबादी है उससे ज्यादा तो यहां के लोग कचरे भी फैलाते हैं। लेकिन आपने कभी ये सोचने की कोशिश किया है की भारत के पास खुद का इतना कचरा होते हुए भी आखिर क्यों दुनिया भर के 25 देशों से भारत कचरा क्यू खरीद रहा है? आप जानकर हैरान हो जाएंगे की भारत हर साल 43 सौ करोड़ टन कचरा अपने देश मंगवाता है। जिसमे से कुछ इलेक्ट्रॉनिक कचरा और कुछ प्लास्टिक कचरा होता है। पर प्लास्टिक कचरे में कुछ ऐसे सामग्री भी मौजूद होते हैं जिन्हें दुबारा कुछ बनाया नहीं जा सकता। तो ऐसी कौनसी जरूरत है जो कचरे से पूरी हो सकती है?
भारत में बहुत सारी लम्बी सड़कें हैं जो काफी मजबूत और शानदार कचरों का प्रयोग करके ही बनती हैं। जिसमे 1 किलोमीटर की सड़क बनाने के लिए 1 टन प्लास्टिक का प्रयोग होता है। वैसे भी देखा जाए तो ये तरीका बुरा नही है क्योंकि प्लास्टिक से सड़क बनाना काफी फायदेमंद साबित हो रहा है। भारत सिर्फ सड़क बनवाने कि लिए ही कचरा नहीं मंगवाता क्योंकि ऐसा होता तो भारत में काफी मजबूत सड़कें बन जाती। असल में कचरों से और भी कई सारी चीजें बनाई जा रही हैं। यहां के लोग भी जुगाड़ू दिमाग लगा के शानदार कारनामे करते हैं। जैसे की आप सतीश कुमार जी से ही मिल लीजिए। जिन्होंने पेट्रोल और डीजल के बढ़ते दामों पर रोक लगाने का तरीका ढूंढ लिया है। सतीश जी ने एक ऐसी तकनीक का अविष्कार किया है जो प्लास्टिक से पेट्रोल और डीजल बनाता है। परंतु सबसे ज्यादा हैरान करने वाली बात तो ये है की पैरालोसिस नाम की अपनी इस तकनीक के जरिए सतीश कुमार उस प्लास्टिक कचरे को भी रीसाइकल कर लेते हैं। भारत में हजारों जगह कचरा निकलता है जिसे मिट्टी में दबा दिया जाता है, जिसके लिए काफी मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है। फिर भी हमारे देश में कचरे बढ़ते ही जा रहे हैं। साल 2020 में ये आंकड़ा हुआ कि भारत में 125 किलोमीटर से ज्यादा सड़कें प्लास्टिक कचरे से बनी हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की साल 2019 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोजाना 25940 टन प्लास्टिक का कचरा निकलता है। यानी लगभग 9000 हाथियों के वजन के बराबर केवल 24% कचरा ही रीसायकल होता है। बाकी कचरा नदी–नालों के किनारे बिखरा रहता है।
अब इतने ज्यादा कचरे को निपटाया कैसे हो? तो जुलाई 2016 में सरकार ने एक ऐलान किया, कहा की सड़क बनाने में प्लास्टिक के कचरे का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके बाद Central Road Research Institute यानी CRRI ने सड़क बनाने के कच्चे मॉल में प्लास्टिक का प्रयोग किया। सड़क बनाने में बहुत सारी सामग्री का प्रयोग होता है, जैसे की डामर (Bitumen)। ये धरती के अंदर पाया जाने वाला एक कला, गाढ़ा और चिपचिपा द्रव्य होता है। सड़क बनाने में रोड़ी का भी प्रयोग करते है, जिसे छोटा पत्थर भी कहा जाता हैं। इसी छोटे पत्थर में प्लास्टिक का कचरा मिलाया जाता है। आमतौर में एक किलोमीटर सड़क के लिए 10 टन डामर लगता है, लेकिन प्लास्टिक मिलाने पर इसकी मात्रा 9 टन ही रह जाती है, बाकी एक टन प्लास्टिक कचरा रह जाता है। इस विधि का प्रयोग से हर एक किलोमीटर पर 1 टन डामर की बचत हो जाती है, जिससे आर्थिक बचत भी हो जाती है।
कैसे मिलाते हैं प्लास्टिक सड़क बनाने की सामग्री में?
प्लास्टिक के इस्तेमाल की तकनीक प्रोफेसर राजगोपालन वासुदेवन ने साल 2001 में तैयार की थी। प्रोफेसर वासुदेवन मदुरई के त्यागराजन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में केमिस्ट्री पढ़ाते हैं। उनकी तकनीक के तहत सड़क बनाने से इस्तेमाल होने वाली रोड़ी को 165 डिग्री सेल्सियस पर गर्म किया जाता है। फिर उसमे प्लास्टिक का कचरा मिलाया जाता है। ऐसे में पत्थर पर प्लास्टिक की कोटिंग हो जाती है और वो काफी मजबूत हो जाता है। वहीं डामर को 160 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करना होता है। सड़क बनाते समय डामर और रोड़ी को मिला दिया जाता है। ये परिक्रिया सावधानी पूर्वक करना जरूरी है क्योंकि डामर यदि शरीर में लग जाता है तो उसे निकालना मुश्किल साबित होता है। वासुदेवन ने इस तकनीक से अपने कॉलेज में भी सड़क बनाई। इस काम के लिए राजगोपालन वासुदेवन को पदमश्री पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। उनकी इस खोज की वजह से लोग उन्हें “प्लास्टिक मैन” भी कहते हैं।
किस तरह का प्लास्टिक कचरा इस्तेमाल होता है?
सड़क बनाने की इस तकनीक में किसी भी तरह के प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया जा सकता है चाहे वो टॉफी का कवर, शॉपिंग का बैग या प्लास्टिक की बोतल ही हो। प्लास्टिक को गर्म रोड़ी में मिलाने से पहले टुकड़ों में काट लिया जाता है। वैसे तो भारत में साल 2012 से ही सड़क बनने में प्लास्टिक का इस्तेमाल हो रहा है लेकिन साल 2015 में इस पर गंभीरता से काम हुआ। साल 2017 के बाद से तो नेशनल हाईवे में भी प्लास्टिक का कचरा उपयोग में आने लगा, और अब प्लास्टिक का उपयोग लगभग अनिवार्य ही हो गया है।
कहां–कहां बनी है ऐसी सड़कें?
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक पिछले 3 साल में 11 राज्यों में इस तरह की सड़कें बनी है जिसमे महाराष्ट्र, झारखंड, मध्य प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे राज्य भी शामिल हैं। जम्मू कश्मीर राष्ट्रीय राजमार्ग पर तो 275 किलोमीटर के हिस्से में प्लास्टिक का उपयोग हुआ है। इसके अलावा नोएडा में महामाया फ्लाईओवर के आसपास बनी सड़क में 6 टन प्लास्टिक इस्तेमाल हुआ है। दिल्ली मेरठ एक्सप्रेस वे पर यूपी गेट के आसपास डेढ़ टन से ज्यादा प्लास्टिक कचरा प्रयोग किया गया है। दिल्ली में धौला कुआं से एयरपोर्ट तक जा रहे राजमार्ग पर भी प्लास्टिक कचरा काम में लिया गया। लखनऊ में गोमती नगर में भी इस तरह की सड़क बनी है। नागालैंड में 150 किलोमीटर और हिमाचल में 138 किलोमीटर सड़कें प्लास्टिक के इस्तेमाल से बनी हैं। सरकार ने अगले 1 साल में प्लास्टिक से 100000 किलोमीटर सड़क बनाने का लक्ष्य रखा है। भारत के बाद भूटान, ब्रिटेन और नीदरलैंड में भी प्लास्टिक कचरे से सड़क बनाने पर काम चल रहा है।
इसके फायदे क्या है?
सड़क बनाने में आने वाला खर्चा कम हो जाता है। प्लास्टिक मिलाने से डामर का खर्च 10% से 15% कम हो जाता है। प्लास्टिक के वजह से सड़क में पानी रिसता नहीं है और इससे गढ्ढे भी नहीं बढ़ते हैं। ये सड़के काफी मजबूत हो जाती हैं। और सड़क की उम्र ऐसा कहा जाता है कि दुगनी हो जाती है, यानी जो सड़क 5 साल तक ही चलती थी, वह अब प्लास्टिक के इस्तेमाल से 10 साल तक चल सकती है। साथ ही प्लास्टिक का इस्तेमाल भी हो जाता है जिससे कचरे में कमी आती है। वैसे इसका इस्तेमाल अभी शुरुआती चरण में ही है और इसका इस्तेमाल अब धीरे–धीरे बड़े स्तर पर ज्यादा हो रहा है। भारत सरकार ने लगभग सभी सड़कों के लिए अनिवार्य भी कर दिया है। हम कह सकते है की कुल मिलाकर भारत जितना भी प्लास्टिक कचरे बना रहा है ,उसमे से 60% कचरे रिसाइकिल कर दिए जाते है। लेकिन बचे हुआ 40% कचरे काफी प्रदूषण के कारण ना बन सके हैं। और ये सभी कचरे नदियों में, नालों में और सुमंद्रो में ना फैल सके, जिससे समुद्री जीवों को काफी नुकसान होता है। ये सब कचरे हमारे पूरे पर्यावरण को भी बिगाड़ के रख देते हैं। इसलिए ऐसे 40% कचरे सड़क निर्माण में प्रयोग किए जा रहे हैं। सरकार के द्वारा ये बहुत ही अच्छी कोशिश है ,जिससे हम प्रदूषण मुक्त होने की कोशिश भी कर सकते हैं। भारत में ऐसे भी बहुत जुगाड़ू लोग है जो सड़क की अलावा भी कचरों को अन्य कामों में प्रयोग कर लेते है। कचरे से लोग ईंट भी बना लेते है, जिससे हमारे देश में मिट्टी की समस्या ज्यादा ना हो पाए। जिसका प्रयोग मकान बनाने में काम आती है और वो काफी मजबूत भी होती हैं। ये ईंट आंधे दाम में ही मिल जाते हैं और इनका आकार भी आम ईंट से बड़ा होता है। इन सब से सबसे सही तरीका सड़क बनाना ही सर्वश्रेष्ठ माना जा रहा है क्योंकि अच्छी सड़क ही हमे दुर्घटना से बचा सकती है। हमारे देश में जो सड़के हैं वो कई प्रकार के होते हैं। जैसे भारत में 63 लाख किलोमीटर लंबी सड़क नेटवर्क है। उसमें नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे, ग्रामीण सड़कें, शहरी सड़कें और जिला सड़कें होते हैं।
उनके बीच अंतर करने के लिए माइलस्टोन अलग-अलग रंगों से रंगे होते हैं। सड़कों के किनारे लगे माइलस्टोन व रंगीन पत्थर हैं जिन्हें हम राजमार्गों और गांव की सड़कों के किनारे किसी स्थान की दूरी को सूचित करते हुए देखते हैं। लेकिन इन दिनों जीपीएस वाले स्मार्टफोन के कारण ये उपेक्षित भी हो रहे हैं लेकिन एक समय था जब ये पत्थर आपके मंजिल तक पहुंचने के लिए और आवश्यक किलोमीटर के बारे में जानकारी का सबसे विश्वसनीय स्रोत था। भारत का सड़क नेटवर्क 63 लाख किमी लंबा है और माइलस्टोन नेशनल हाइवे, स्टेट हाईवे और गांव की सड़कों के बीच अंतर करने के लिए रंगे होते हैं। 2015-2016 के रिकॉर्ड के अनुसार, भारत में राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई 1.01 लाख किमी है। सड़क के किनारे पीले रंग की पट्टी वाला माइलस्टोन दिखाई देता है, तो इसका मतलब है कि आप राष्ट्रीय राजमार्ग पर हैं।और यदि आपको सड़क के किनारे हरे रंग की पट्टी वाला माइलस्टोन दिखाई देता है, तो इसका मतलब है कि आप राज्य के स्टेट हाईवे पर हैं। राज्य के स्टेट हाईवे एक राज्य के विभिन्न शहरों को जोड़ते हैं। 2015-2016 के रिकॉर्ड के अनुसार, देश में राज्य राजमार्गों की कुल लंबाई 1.76 लाख किमी है। यही सब वजह हैं जो धीरे–धीरे हमारे देश को विकसित देश होने में मदद कर रही है और हमारी अर्थव्यवस्था को सुधार रही है।