देखिए समुंद्र में गोते लगाती इन मल्टी बिलियन शिप्स को देखकर आपके दिमाग में क्या आता है ऑफकोर्स इनकी रॉयल्टी लगजरी टॉप नॉच फैसिलिटी और शायद यह कि बिल्डिंग्स जितनी बड़ी इन शिप्स को कंस्ट्रक्ट कैसे किया जाता होगा लेकिन जनाब मेरे दिमाग में तो यह आता है कि आखिर इतने बड़े शिप की सफाई कैसे होती होगी भला कितने वर्कर्स एक शिप को साफ करने में लगते होंगे भाई अब जाहिर है कि लाखों टन भरी शिप्स के बेस और हल्की सफाई जमीन पर तो होना पॉसिबल है नहीं तो आखिर वो आदमी कौन होता होगा जो पानी के अंदर जाकर शिप्स के बेस को क्लीन करता होगा यह काम कितना जोखिम भरा होता होगा इसके लिए कौन से इक्विपमेंट्स इस्तेमाल में लाए जाते होंगे और आखिर वो कौन सा हिस्सा होता होगा जिसे साफ करने में सबसे ज्यादा मुश्किल आती होगी और सबसे जरूरी कि यह करना इतना जरूरी क्यों होता होगा तो चलिए आज की वीडियो में इस खतरनाक वर्क की पूरी प्रोसेस को समझ लेते हैं देखिए नीले समंदर में उतरते इन वर्कर्स को देखिए ये आज काम पर जा रहे हैं और काम किसी रेयर फिश को पकड़ने या गहरे पानी में खजाना ढूंढने का तो नहीं है बल्कि जान हथेली पर रखकर टॉप क्लास मल्टी बिलियन शिप्स को साफ करने का है समुद्र के डीप प्रेशर को झेलते हुए सतह तक जाना जहां इन ड्राइवर्स के लिए सबसे बड़ी चुनौती है वहीं उससे बड़ा यह डर भी है कि मरीन एनिमल्स का अटैक कहीं उन्हें घायल ना कर द अगर ऐसा हुआ तो मदद पहुंचने से पहले इनकी जान भी जा सकती है और यह क्लीनिंग जॉब इनकी आखिरी जॉब हो सकती है अगर अटैक से बच भी गए तो सेफ्टी फीचर में एक गलती इन पर भारी भी पड़ सकती है मगर यह एक अकेले वर्कर नहीं है जिन्हें हर दिन इस खतरे का सामना करना पड़ता है बल्कि शिपिंग क्लीनिंग इंडस्ट्री के वर्कर्स के लिए यह उनकी जिंदगी है सरहद पर ना होते हुए भी वह हर दिन समुद्र में एक जंग पर निकलते हैं और उसमें जीत हासिल करने के लिए वह जिस

थॉट को प्रायोरिटी देते हैं व है शिप को चकाचक नया जैसा बनाने की फिर चाहे इस काम में कई हफ्तों का वक्त ही क्यों ना लग जाए जी हां सही सुना आपने कई हफ्ते एक शिप को साफ करने में इतना ही वक्त लगता है अब आपके दिमाग में जरूर सवाल आ रहा होगा कि भैया ऐसी भी कौन सी सफाई है जो इतने वक्त तक चलती है 20 सेकंड्स में जम्स को मारने का वादा तो डेटॉल भी कर देता है तो फिर ये वर्कर्स कौन से बैक्टीरिया को मारने में इतना वक्त लगा रहे हैं और स्पेशली शिप के निचले हिस्से को साफ करने की जरूरत ही क्यों है लोग चमचमाती क्रूज की बाहरी खूबसूरती को ही तो अपना दिल दे बैठते हैं

फिर इसके बेस पर टाइम बर्बाद करने का क्या मतलब है वो तो हमेशा पानी में ही रहता है अब जनाब झाड़ू पोछे वाली ऐसी वैसी क्लीनिंग की जरूरत तो बेस को नहीं होती लेकिन अगर निचले हिस्से में डीप क्लीनिंग ना हो तो मजबूत से मजबूत शिप की भी कुछ ही सालों में हवा निकल जाती है दरअसल होता यह है कि डीप ओशियन वाटर में यात्रा करते हुए सी माइक्रो ऑर्गेनिस्ट म समुद्री केमिकल्स और बर्नेकल्स की एक मोटी लेयर्स शिप के निचले हिस्से से चिपक जाती है धीरे-धीरे यह लेयर शिप की एक्सपेंसिव बॉडी को बर्बाद करने लगती है बेस में लगी एल्गे हल को डैमेज कर देती है वहीं बची कुची कसर समुद्री जीव पूरी कर देते हैं ऐसे में शिप की स्पीड और वर्किंग कैपेसिटी कम हो जाती है और फ्यूल 30 प्र तक बढ़ जाता है कहते हैं कि शिप का मेटल स्ट्रक्चर जब डीक्रेड होता है तो उसकी ट्रैवलिंग कैपेबिलिटी भी गिर जाती है इसलिए यह जरूरी है कि टाइम टू टाइम शिप की मेंटेनेंस पर काम हो बस इसी बात को ध्यान में रखते हुए हर 6 महीने में कंपनीज अपनी शिप्स की सफाई जरूर करवाते हैं जबकि किसी भी शिप को साफ करने में आने वाला खर्च $1.

3 मिलियन डॉलर का होता है यानी करीब 8 से 9 करोड़ यकीन मानिए यह अमाउंट जितना बड़ा है उससे भी एडवांस्ड इक्विपमेंट्स इस प्रोसेस में इस्तेमाल होती हैं सिर्फ वर्कर्स के समंद्र में उतरने से ही यह क्लीनिंग प्रोसेस कंप्लीट नहीं होती बल्कि फुटबॉल ग्राउंड जितने बड़े साइज वाले इन शिप्स को बिल्कुल पहले जैसा बनाने के लिए कई स्टेजेस में काम होता है कुछ कंपनीज जहां क्लीनिंग प्रोसेस और स्पेशली हल की सफाई को ड्राई डेक्स यानी आर्टिफिशली बने ड्रेनेज सिस्टम में करना पसंद करती हैं तो वहीं ज्यादातर कंपनीज इस पूरी प्रोसेस को समंदर के गहरे पानी में ही करती हैं क्योंकि इससे सफाई में आने वाला खर्चा काफी हद तक कम हो जाता है अब बात करें अगर क्लीनिंग प्रोसेस की तो शिप के बेस और हल को साफ करने की कई प्रोसेस होती हैं आज इसे करने के लिए कई रोबोट्स और एडवांस इक्विपमेंट्स को इस्तेमाल मिलाया जाता है लेकिन वह भी एक वक्त था भैया जब इस पूरी प्रक्रिया को हाथों से किया जाता था कई वर्कर साथ मिलकर एक क्रूज शिप को साफ करने में हफ्तों लगा दिया करते थे हालांकि आज भी कई बार शिप के हल को मैनुअली साफ किया जाता है लेकिन अब इसे मेजर्ली अंडर वाटर ब्रश कार्ट और मैग्नेटिक रोबोट कॉलर्स जैसी प्रोसेस से किया जाता है जिसके तहत बैटरी से चलाने वाले रोबोट्स मशीनस पानी के अंदर तक जाकर हल को साफ कर देते हैं बात करें मैनुअल प्रोसेस की तो यह जितनी रोमांचक दिखती है उससे भी कई ज्यादा खतरनाक होती है यहां ड्राइवर्स पानी के अंदर हाई प्रेशर वाटर जेट के इस्तेमाल से एलग और मरीन ग्रोथ को निकालने की कोशिश करते हैं इससे सफाई में लगने वाला टाइम तो कम होता ही है साथ ही साथ यह बेहद ही इफेक्टिव क्लीनिक टेक्नीक होती है मगर इसे करने के लिए बेहद ही हाई कमर्शियल इक्विपमेंट्स की जरूरत होती है और इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि क्लीनिंग ऑपरेशन में कोई भी ह्यूमन एरर ना हो नहीं तो शिप के बेस से एंटीफाउलिंग पेंट निकल जाता है और अगर एक बार यह निकल गया तो भैया शिप की बॉडी के अलगे से खराब होने के चांसेस और भी ज्यादा बढ़ जाते हैं और मेंटेनेंस का यह पूरा प्रोसेस एक बड़ा ब्लेंडर बन जाता है जिससे लाखों करोड़ों का नुकसान क्लीनिंग कंपनी के सर चढ़ जाता है इसलिए जरूरी है कि मेंटेनेंस के इस पूरे प्रोसेस को एक्सपर्ट ड्राइवर्स ही अंजाम दें इसके अलावा सफाई के लिए जिस दूसरे प्रोसेस को इस्तेमाल किया जाता है वो है ब्रश कार्ट जी हां हालांकि इस स्पेशलाइज्ड मशीन को भी चलाने के लिए एक एक्सपर्ट की जरूरत पड़ती है मगर पानी के अंदर जब यह मशीन मूव करती है तो इसमें लगे

रोटेटिंग ब्रश एक तरह का संशन क्रिएट करते हैं जो शिप के सरफेस से हर तरह की गंदगी निकाल देते हैं और हल को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचता है ब्रश कार्ड का सबसे खास फीचर है कि इसमें सॉफ्ट और हार्ड दोनों तरह के मोड दिए होते हैं और ड्राइवर्स हल की कंडीशन के आधार पर ही मोड को कम या ज्यादा कर सकते हैं इससे एंटी फाउल पॉइंट निकलने का डर भी खत्म हो जाता है और सफाई भी अच्छे से हो जाती है पानी के अंदर होने वाले इस प्रोसेस के जहां कई सारे एडवांटेजेस हैं वहीं इसका सबसे बड़े नुकसान है कि इस प्रक्रिया में शिप हल से निकलने वाला ऑयल ग्रीस और वेस्ट समुद्री

पानी में ही मिल जाता है यह ना केवल मरीन एनिमल के लिए खतरनाक होता है बल्कि शिप क्लीनिंग में पानी के नीचे काम करने वाले ड्राइवर्स के लिए भी यह काफी हजा डस होता है चारों तरफ फैले गंदे ऑयल ग्रीस और रिलीज बायोकेमिकल में वो फिर भी कई दिनों तक काम करते हैं और इसका इंपैक्ट लंगर रन में झेलना होता है मगर इन सबके बाद भी ज्यादातर कंपनी शिप क्लीनिंग के प्रोसेस को समंदर में करने पर ही जोर देते हैं क्योंकि एनवायरमेंट से ज्यादा सभी क्लीनिंग कंपनीज का ध्यान अपने पैसे बचाने पर होता है खैर आइए बात करते हैं ड्रा डॉक पर होने वाली हल क्लीनिक की तो इस प्रोसेस में बड़ी से बड़ी शिप्स को बड़े-बड़े ड्राई डॉक्स में प्लेस किया जाता है जो कि एक तरह के ड्रेनेज सिस्टम्स होते हैं यहां शिप का बेस पूरी तरह से विजिबल होता है और ऐसे में हल को साफ करना बेहद ही आसान हो जाता है ड्राई डॉक में अक्सर शिप को साफ करने के लिए मैग्नेटिक रॉबर्ट कॉलर्स का भी इस्तेमाल किया जाता है इस एडवांस्ड मशीनरी को दरअसल एक रिमोट से कंट्रोल किया जाता है इसमें एक ऑपरेटर रॉबर्ट क्रॉलर को पावरफुल मैग्नेट से शिप पर अटैच कर देता है और उसके बाद शिप के हल को चकाचक चमकाने की जिम्मेदारी इस मशीन के सर आ जाती है और कमाल की बात तो देखिए यह मशीनरी शिप के हर हिस्से में जाकर उसे नया जैसा बना देती है लेकिन एक तरफ जहां इस प्रोसेस में मोटा पैसा खर्च होता है वहीं यह काफी टाइम कंजूमिंग भी होता है कभी-कभी तो दो से तीन हफ्तों तक शिप की मेंटेनेंस का वर्क चलता है और इस दौरान क्योंकि शिप ट्रेवल नहीं कर रही होती इसलिए कंपनी को एक बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ता है लेकिन इसका एडवांटेज यह होता है कि भैया शिप के हर हिस्से को एग्जामिन करना आसान हो जाता है बॉडी कितनी खराब है और कितने रिनोवेशन की जरूरत है यह सभी बातें अच्छे से एग्जामिन की जाती हैं कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि शिप को ड्राई डॉक पर साफ करना एक बेहतर और सेफ ऑप्शन है लेकिन जब इसी प्रोसेस को पानी के अंदर किया जाता है तो बारीकियों को जांचने की जिम्मेदारी भी ड्राइवर्स पर आ जाती है समुंद्र के गहरे पानी में हालांकि उन्हें दि दिखाई नहीं देता है और चैलेंज काफी ज्यादा होते हैं लेकिन वो अंडर वाटर प्रोपेलर से लेकर शिप के हर डिफेक्ट को एग्जामिन करते हैं और अगर कोई मेजर डिफेक्ट होता भी है तो उसे पूरी तरह ठीक भी करते हैं आपको बता दें कि नॉर्मली एक अंडर वाटर शिप क्लीनर हर घंटे 2000 से 4000 स्क्वा फीट का फ्लैट सरफेस क्लीन करता है फिर भी एक शिप को साफ करने में कई

दिन लग जाते हैं मगर यह शिप के साइज और हलके डैमेज पर भी डिपेंड करता है कि कितने दिन मेंटेनेंस में लग सकते हैं शिप क्लीनर्स की यह जॉब कई लोगों को मजेदार भी लगती है लेकिन रियलिटी यह है कि हर एक पोर्शन को एग्जामिन और साथ-साथ पेंट कोटिंग का ख्याल रखना इतना आसान नहीं होता अक्सर क्लीनर्स को किसी भी वेसल को साफ करने से पहले उसकी स्पेसिफिक डिटेल्स को समझना होता है उसके बाद ही ये अपने काम पर निकलते हैं इस दौरान इनके पास कई तरह के सेफ्टी फीचर्स होते हैं पानी के नीचे ब्रीद करने के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर भी इनके पास होता है इसके अलावा कई बल की टूल्स को इन्हें साथ में रखना होता है और हाथों को बचाने के लिए थिक ग्लव्स भी इनके पास होते ही हैं अब इतनी सारी कंडीशंस के साथ जरा सोचिए इनके लिए क्लीनिंग जॉब को पूरा करना इतना टफ होता होगा ऐसे कई मामले भी रहे हैं जब इस काम को करते हुए ड्राइवर्स घायल हुए हैं लेकिन फिर भी बड़ी कंपनीज द्वारा अंडर वाटर क्लीनिंग को ही तवज्जो दी जाती है जबकि इससे होने वाली एनवायरमेंटल डैमेजेस की लिस्ट काफी लंबी है

By Naveen

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