भारतीय इतिहास में कई ऐसी घटनाएं घटी हैं जो न केवल उस समय के समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव डाल गईं, बल्कि आज भी उनकी गूंज सुनाई देती है। ऐसी ही एक घटना है बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा यूनिवर्सिटी का दहन। यह घटना भारतीय इतिहास के पन्नों पर एक काले धब्बे के रूप में दर्ज है।
नालंदा यूनिवर्सिटी: एक महान शिक्षा केंद्र
नालंदा यूनिवर्सिटी की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त ने की थी। यह विश्वविद्यालय प्राचीन भारत का एक प्रमुख शिक्षा केंद्र था, जहाँ न केवल भारत के विभिन्न हिस्सों से बल्कि चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत, मंगोलिया, तुर्किस्तान और अन्य विदेशी देशों से भी विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे।
नालंदा का अर्थ है “ज्ञान का दान करने वाला”, और यह नाम इसे उचित ही दिया गया था। यहाँ 10,000 से अधिक विद्यार्थी और 2,000 से अधिक शिक्षक थे। यहाँ विभिन्न विषयों जैसे कि धर्म, तर्कशास्त्र, चिकित्सा, गणित, खगोलशास्त्र, और भाषा का अध्ययन किया जाता था।
बख्तियार खिलजी का आगमन
मोहम्मद बख्तियार खिलजी, अफगानिस्तान के ग़ोरी वंश का एक प्रमुख सेनापति था। वह 12वीं शताब्दी के अंत और 13वीं शताब्दी की शुरुआत में उत्तर भारत में अपने आक्रमणों के लिए जाना जाता है। बख्तियार खिलजी का उद्देश्य केवल विजय प्राप्त करना नहीं था, बल्कि उसने एक अत्यंत कट्टर धार्मिक दृष्टिकोण अपनाया था।
नालंदा का दहन
बख्तियार खिलजी ने 1193 ई. में नालंदा पर आक्रमण किया। उसने नालंदा विश्वविद्यालय को जलाकर नष्ट कर दिया। इस घटना के पीछे कई कारण बताए जाते हैं:
- धार्मिक असहिष्णुता: बख्तियार खिलजी एक कट्टर मुस्लिम था, और उसने बौद्ध धर्म के प्रमुख केंद्र नालंदा को नष्ट करने का निर्णय लिया। उसकी धार्मिक असहिष्णुता ने उसे बौद्ध धर्म और शिक्षा के इस महान केंद्र को समाप्त करने के लिए प्रेरित किया।
- शैक्षिक और सांस्कृतिक विध्वंस: बख्तियार खिलजी ने भारतीय शिक्षा प्रणाली को कमजोर करने के लिए नालंदा विश्वविद्यालय को निशाना बनाया। नालंदा के पुस्तकालय में अनगिनत पांडुलिपियाँ थीं, जिन्हें जलाकर उसने भारतीय विद्या और विज्ञान को गहरा धक्का पहुँचाया।
- सैन्य और राजनीतिक कारण: नालंदा का दहन खिलजी की सैन्य रणनीति का हिस्सा भी था। उसने इस विश्वविद्यालय को नष्ट करके अपने प्रभाव को स्थापित करने और स्थानीय जनता पर भय और आतंक का माहौल बनाने का प्रयास किया।
पुस्तकालय का विनाश
नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय, जिसे धर्मगंज के नाम से जाना जाता था, प्राचीन विश्व का सबसे बड़ा पुस्तकालय था। इसमें तीन प्रमुख भवन थे: रत्नसागर, रत्नोद्धि, और रत्नरंजक। इनमें लाखों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ थे, जो विभिन्न विषयों पर ज्ञान का भंडार थे।
जब बख्तियार खिलजी ने नालंदा पर आक्रमण किया, तो उसने इस पुस्तकालय को जलाने का आदेश दिया। कहा जाता है कि पुस्तकालय में आग इतनी भीषण थी कि यह तीन महीनों तक जलती रही। इस आग ने न केवल अनगिनत पुस्तकों और पांडुलिपियों को नष्ट कर दिया, बल्कि प्राचीन भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और शैक्षिक धरोहर को भी समाप्त कर दिया।
प्रभाव और परिणाम
नालंदा विश्वविद्यालय के दहन का भारतीय समाज और संस्कृति पर गहरा प्रभाव पड़ा। यह घटना भारतीय इतिहास की सबसे दुखद घटनाओं में से एक मानी जाती है।
- शैक्षिक हानि: नालंदा विश्वविद्यालय के नष्ट होने से भारतीय शिक्षा प्रणाली को बड़ा धक्का लगा। यहाँ के विद्वान और विद्यार्थी बिखर गए, और कई शताब्दियों तक भारत में उच्च शिक्षा का कोई बड़ा केंद्र नहीं रहा।
- सांस्कृतिक हानि: नालंदा का दहन भारतीय संस्कृति और ज्ञान की विशाल धरोहर का विनाश था। यह न केवल बौद्ध धर्म के लिए, बल्कि समग्र भारतीय संस्कृति के लिए भी एक अपूरणीय क्षति थी।
- धार्मिक असहिष्णुता का प्रतीक: यह घटना धार्मिक असहिष्णुता का प्रतीक बन गई। बख्तियार खिलजी की यह क्रिया यह दर्शाती है कि किस प्रकार धार्मिक कट्टरता और असहिष्णुता ने भारतीय समाज को विभाजित किया और उसे कमजोर किया।
पुनर्निर्माण का प्रयास
हालांकि नालंदा विश्वविद्यालय का पुनर्निर्माण करने के कई प्रयास किए गए, लेकिन यह अपनी प्राचीन महिमा और प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त नहीं कर सका। आधुनिक समय में, भारत सरकार ने नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः स्थापित करने का प्रयास किया है। 2014 में नालंदा विश्वविद्यालय को एक अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के रूप में पुनः स्थापित किया गया, जिसमें विभिन्न देशों के विद्यार्थी अध्ययन करते हैं।
बख्तियार खिलजी द्वारा नालंदा विश्वविद्यालय का दहन भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण और दुखद घटना है। यह घटना न केवल धार्मिक असहिष्णुता और सांस्कृतिक विध्वंस का प्रतीक है, बल्कि यह हमें यह भी याद दिलाती है कि शिक्षा और ज्ञान की रक्षा कितनी महत्वपूर्ण है। नालंदा विश्वविद्यालय का विनाश हमें यह सिखाता है कि शांति, सहिष्णुता, और शिक्षा का प्रसार ही सच्ची प्रगति का मार्ग है।