हजारों लोग जब आपके आगे नतमस्तक हों और आपको इतना सम्मान दें कि आपकी चरण रज को अपने मस्तक से लगा लें तो किसी को भी खुदा होने का गुमान होना लाजिमी है. कुछ ऐसा ही किस्सा आसाराम बापू का भी है. कभी तांगे की डोर संभाले लोगों का इंतजार करने वाला एक शख्स भगवान के दर्जे तक आखिर कैसे पहुंचा?
स्वयंभू संत से बलात्कारी तक…
आसाराम बापू एक ऐसा स्वयंभू संत है जिसके देश भर में हजारों अनुयायी हैं. लेकिन ये बात भी हैरान करने वाली है कि उस पर बलात्कार के कई मामले दर्ज हैं. उसे उत्तर प्रदेश की 16 साल की एक लड़की के बलात्कार के मामले में सजा सुनाई गई थी. इस मामले में वो जोधपुर में उम्रकैद की सजा काट रहे थे.
इंदौर से अगस्त 2013 में उसकी गिरफ्तारी हुई थी. मंगलवार 31 जनवरी को गांधीनगर की अदालत ने दो बहनों से रेप केस में आसाराम को उम्रकैद सजा सुनाई है. हजारों करोड़ों रुपये का साम्राज्य चलाने से लेकर पॉक्सो एक्ट के तहत आरोपों का सामना करने वाले कैदी से ये अब जेल यात्रा पर हैं.
आपको नहीं लगता आसाराम बापू की जिंदगी का सफर खासा दिलचस्प रहा है. दरअसल 1941 में पाकिस्तान के बेरानी गांव में मेंहगीबा और थाउमल सिरुमलानी के घर एक बच्चा पैदा हुआ. नाम रखा गया आसुमल सिरुमलानी. बंटवारे के बाद इस बच्चे का परिवार अहमदाबाद चला आया. पिता कोयले और लकड़ी के कारोबारी थे तो पिता की मौत के बाद आसुमल सिरुमलानी ने उनका पुश्तैनी कारोबार संभाल लिया. लेकिन जल्द ही आसुमल का परिवार गुजरात के मेहसाणा जिले के वीजापुर चला आया.
इस दौरान किशोर आसुमल घर से अक्सर दूर रहता और आध्यात्मिकता की तरफ जाने की अपनी कोशिशों में रमा रहता. परिवार को लगा कि शादी के बंधन में बांध देंगे तो लड़के के पैर घर में टिकेंगे. कहा जाता है कि 15 साल की उम्र में वह अपनी शादी से ठीक पहले एक आश्रम में भाग गया था.
हालांकि परिवार मान मनौवल कर उसे वापस घर लौटा लाया और तुरंत उसकी शादी लक्ष्मी देवी से कर डाली. शादी के बाद दो बच्चे बेटा नारायण साईं और बेटी भारती देवी पैदा हुए, लेकिन आसुमल का मन शादी के बाद भी घर में नहीं रमा और 23 साल की उम्र में एक बार फिर से वो घर से भाग निकला. इस दौरान वो अपने आध्यात्मिक गुरु लीलाशाहजी महाराज के संपर्क में आया.
आसुमल चला आध्यात्मिकता की राह
आध्यात्मिक गुरु लीलाशाहजी महाराज ने ही आसुमल को अपना शार्गिद बना लिया और उसे अध्यात्म की राह की तरफ लेकर चले. फिर वो दौर आया जब आसुमल ने 7 अक्टूबर 1964 को खुद को एक नया नाम संत श्री आसाराम महाराज दे डाला. शायद गुरु लीलाशाहजी महाराज को चेले के भविष्य के कारनामों के बारे में पहले ही आभास हो गया था. यही वजह रही की उन्होंने आसुमल को आश्रम से बाहर का रास्ता दिखा दिया. फिर क्या था आसुमल को खुली छूट मिल गई और उसने यानी संत श्री आसाराम ने हिंदू धर्म के अपने ब्रांड का प्रचार- प्रसार शुरू कर दिया.
बना आसाराम का आश्रम
आसुमल अब संत श्री आसाराम के तौर पर मशहूर होने लगे तो लगे हाथ उन्होंने 1972 में गुजरात के मोटेरा शहर में लगभग 5 से 10 अनुयायियों के साथ अपना पहला आश्रम बना लिया. आसाराम ने सूरत का रुख किया तो भोले-भाले आदिवासी आसानी से उनके अनुयायी बनते गए. अगस्त 2012 में गोधरा के नजदीक आसाराम का हैलीकॉप्टर क्रैश हो गया था, लेकिन वो पायलट और सभी यात्री बच गए थे. इसके बाद उनके सत्संग लोगों की संख्या बढ़ती गई और स्वयंभू संत आसाराम का हौसला बुलंद होता रहा. उन्होंने पूरे राज्य और देश में आश्रम खोले.
इनमें 40 से अधिक गुरुकुल (स्कूल) थे तो कारोबारी कुनबे से आए आसाराम को कारोबार भी नहीं भूला. उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस शुरू की तो साबुन, शैंपू, दवाइयां आदि जैसे उत्पादों का कारोबार भी खोल डाला. साल 2008 तक आसाराम का साम्राज्य 5000 करोड़ रुपये तक जा पहुंचा. ये खुलासा पुलिस की दायर चार्जशीट में किया गया था.
नेता और सरकारें हुईं मुरीद
आसाराम मशहूर होते गए और इसी के साथ उनके अनुयायियों की संख्या में भी इजाफा होता गया. अनुयायियों के बड़े समूहों ने राजनेताओं का ध्यान आकर्षित किया. सब संत के मुरीद होने लगे कांग्रेस के साथ ही बीजेपी की सरकारों ने उन्हें उनके प्रोजेक्ट्स के लिए जमीन दी.
तांत्रिकों से सीखी थी सम्मोहन की कला
आसाराम ने हिंदू धर्म को अपने ब्रांड में तब्दील करने के लिए तांत्रिक क्रियाओं के साथ हिंदू शास्त्रों को सरल तरीके से बताने की मिलावट की. कहा जाता है कि काले जादू को भी आसाराम ने अपना धार्मिक ब्रांड बनाया. जब आसाराम आसुमल से थे तो कुछ तांत्रिकों से सम्मोहन की कला भी हासिल की थी. आसाराम ने अपने आध्यात्मिक प्रोजेक्ट को भारतीय आबादी के वंचित वर्गों की जरूरतों के मुताबिक बनाया था. यही वजह रही कि आदिवासियों और उत्तर भारत की हिंदी भाषी आबादी के बीच वो खासे मशहूर हैं.
वीजापुर मजिस्ट्रेट दफ्तर के बाहर चाय की वो दुकान
वीजापुर में मजिस्ट्रेट दफ्तर के बाहर एक दुकान है. कहा जाता है कि कभी आसुमल यानी आसाराम अपने रिश्तेदार सेवक राम की इस दुकान पर भी काम किया करता था. थी. ये चाय की दुकान आज भी है. यहां के लोकल लोगों के मुताबिक 1959 में उस पर अपने रिश्तेदारों के साथ मिलकर शराब के नशे में कत्ल का आरोप भी लगा था, लेकिन सबूत न मिलने की वजह से वो बरी हो गया.
इसके बाद 60 के दशक में उसने वीजापुर छोड़कर अहमदाबाद के सरदारनगर इलाके का रुख किया. आसुमल के दोस्त होने का दावा करने वाले काडूजी ठाकोर के मुताबिक उनकी दुकान से शराब खरीदकर आसुमल अन्य चार सिंधी साझेदारों जमरमल, नाथूमल, लचरानी, किशन मल के साथ शराब का धंधा कर मोटे पैसे कमाते थे.
जानकारों के मुताबिक सफेद बनियान और नीली निकर में शराब का पूरा गैलन अकेले ही लेकर जाने वाले आसुमल का 3-4 साल बाद ही इस धंधे से मन भर गया. इसके बाद 300 रुपये की पगार में दूध की एक दुकान पर काम करने के बाद अचानक वो गुम हो गया. फिर वह एक दूध की दुकान पर महज 300 रुपये में नौकरी करने लगा. फिर वह कुछ समय बाद गायब हो गया.
जब संत आसाराम तांगा चलाया करता था
आप यकीन करेंगे कि 49 साल पहले संत आसाराम नहीं बल्कि आसुमल सिंधी तांगें वाले के नाम से मशहूर था. गुजरात के बाद उसने इस शहर का रुख किया था. वो अजमेर के डिग्गी चौक तांगा चलाया करता करता था और चाचा के साथ शीशा खान इलाके में किराए के घर में रहता था. अजमेर तांगा यूनियन के सचिव हीरा भाई के मुताबिक आसुमल को तांगा चलाने का लाइसेंस उन्होंने ही दिलवाया था. दौलत कमाने की चाह इतनी अधिक थी कि आसुमल लगातार रेलवे स्टेशन से अजमेर दरगाह पर सवारी ले जाने से गुरेज नहीं करते थे.
तब आसाराम गरम दिमाग के हुआ करते थे और अपने साथी तांगें वालों के साथ-साथ सवाली से भी किराए के लिए उलझते रहते थे. अजमेर में तांगा चलाने के बाद चाय की दुकान पर भी कुछ वक्त आसुमल ने काम किया था, दिल भरने और अमीर होने की चाहत में आसाराम ने अजमेर को अलविदा कहा और फिर अहमदाबाद जा पहुंचा.
पहले भी लगे हैं आसाराम पर आरोप
कई बार आसाराम कानून के शिकंजे में फंसा है. 2008 में, मोटेरा में उनके आश्रम के पास, साबरमती नदी के किनारे से दो बच्चों के क्षत-विक्षत शव बरामद हुए थे. इन बच्चों के शरीर के कुछ अहम अंग गायब थे. तब गुजरात पुलिस ने 2009 में उसके सात अनुयायियों पर दो बच्चों की हत्या का मामला दर्ज किया था. अगस्त 2013 में दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज किया गया था.
ये मामला आसाराम पर जोधपुर में अपने आश्रम में एक 16 साल की लड़की के साथ बलात्कार करने पर दर्ज हुआ था. तब 31 अगस्त 2013 को हिरासत में लिया गया था. इसके कुछ महीने बाद स्वयंभू संत पर सरकार की कार्रवाई के बारे में जानकर सूरत की दो बहनों ने उनके साथ उनके बेटे नारायण साईं पर भी आरोप लगाए.
उन्होंने कहा कि वे आसाराम के अनुयायी थे और उन्होंने अपने बेटे के साथ मिलकर उनके साथ बार-बार बलात्कार किया और उन्हें आश्रम परिसर में बंद कर दिया. इसके बाद हत्याओं का सिलसिला शुरू हो गया. मामले के तीन प्रमुख गवाहों की हत्या कर दी गई और 9 पर हमला किया गया.
आसाराम के कथित गुर्गे कार्तिक हलदर को मार्च 2016 में छत्तीसगढ़ के रायपुर से गिरफ्तार किया गया था. आसाराम के खिलाफ आपराधिक आरोपों के बावजूद, ‘स्वयंभू’ के दो करोड़ से अधिक अनुयायी हैं. उनके पास लाखों की संपत्ति है, 12 देशों में उनके करीब 400 आश्रम हैं और 50 से अधिक स्कूल हैं.