हिटलर की ज़िन्दगी के आखरी 24 घंटे
बर्लिन, 30 अप्रैल 1945: इतिहास के सबसे कुख्यात तानाशाहों में से एक, अडोल्फ हिटलर के जीवन के अंतिम 24 घंटे नाटकीय घटनाओं, निर्णयों और पराजय की भावना से भरे हुए थे। द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम चरण में, जब नाजी जर्मनी की हार निश्चित थी, हिटलर ने अपने बर्लिन स्थित बंकर में अपनी ज़िन्दगी का अंत किया। आइए, जानते हैं उन आखिरी 24 घंटों का विस्तृत विवरण।
29 अप्रैल 1945: तबाही के साये में
सुबह का समय: 29 अप्रैल की शुरुआत होते ही, हिटलर और उसके सबसे करीबी सहयोगी बंकर में घिरे हुए थे। रेड आर्मी ने बर्लिन को पूरी तरह से घेर लिया था और शहर का पतन निश्चित था। इस गंभीर स्थिति में भी, हिटलर ने अपनी लंबे समय की साथी ईवा ब्राउन से शादी करने का अप्रत्याशित निर्णय लिया। शादी का छोटा सा समारोह बंकर के नक्शा कमरे में हुआ, जिसे वॉल्टर वागनर ने संपन्न कराया। इसके बाद, दोनों ने साधारण शादी का नाश्ता किया।
दोपहर का समय: शादी के तुरंत बाद, हिटलर ने अपनी अंतिम वसीयत और राजनीतिक वसीयतनामा अपनी सचिव ट्राउडल जुंगे को सुनाया। इसमें हिटलर ने अपनी संपत्ति के वितरण और नाजी शासन के नए नेताओं की नियुक्ति की जानकारी दी। उसने अपने दुश्मनों पर तीखे प्रहार करते हुए यहूदियों को जर्मनी की हार के लिए जिम्मेदार ठहराया।
दोपहर बाद: हिटलर अपने शेष सैन्य नेताओं के साथ संपर्क में रहा और बर्लिन की रक्षा के लिए आखिरी आदेश जारी किए। उसने शहर छोड़ने से इंकार कर दिया और अपने सैनिकों को अंत तक लड़ने का आदेश दिया।
शाम: शाम होते-होते बंकर का माहौल गंभीर हो गया। हिटलर ने अपने स्टाफ और सैन्य सहायकों से विदाई ली। उसने पहले ही तय कर लिया था कि वह सोवियत सैनिकों के हाथों में पड़ने की बजाय अपनी जान ले लेगा। उसने अपने करीबी सहयोगियों को सायनाइड कैप्सूल वितरित किए और जहर का उपयोग करने के बारे में निर्देश दिए।
30 अप्रैल 1945: अंतिम दिन
सुबह जल्दी: 30 अप्रैल की सुबह अपेक्षाकृत शांत थी। हिटलर और ईवा ब्राउन ने साथ में नाश्ता किया। बाहरी उथल-पुथल के बावजूद, बंकर के भीतर एक अजीब सी शांति थी।
सुबह: सुबह के दौरान हिटलर को मोर्चे से रिपोर्ट मिली, जिससे यह पुष्टि हुई कि बर्लिन का पतन निकट था। साथ ही उसे पता चला कि उसका सहयोगी, बेनिटो मुसोलिनी, पकड़ा गया और मार डाला गया है। इस खबर ने हिटलर के जिंदा पकड़े जाने से बचने के संकल्प को और मजबूत कर दिया।
दोपहर: दोपहर तक हिटलर ने अपनी अंतिम तैयारियाँ पूरी कर लीं। वह और ईवा ब्राउन अपने निजी कक्ष में चले गए। लगभग 3:30 बजे, बाहर खड़े लोगों ने एक गोली की आवाज सुनी। जब वे अंदर गए, तो हिटलर को सिर में गोली मारकर मरा हुआ पाया और ईवा ब्राउन को सायनाइड लेकर मरा हुआ पाया।
दोपहर बाद: हिटलर और ईवा ब्राउन की लाशों को राइख चांसलरी के बगीचे में ले जाया गया, पेट्रोल से भिगोया गया और जला दिया गया, ताकि सोवियत सैनिक उनकी लाशों को पकड़कर प्रदर्शित न कर सकें।
शाम: 30 अप्रैल के शेष घंटे बर्लिन में नाजी प्रतिरोध के अंतिम अवशेषों के पतन के साथ बीते। हिटलर की मौत की खबर फैलते ही नाजी नेतृत्व में भ्रम और भय व्याप्त हो गया।
अडोल्फ हिटलर के जीवन के अंतिम 24 घंटे नाटकीय घटनाओं और निराशा से भरे थे। दुश्मनों से घिरा और अपरिहार्य हार का सामना करते हुए, हिटलर ने अपनी जान लेने का फैसला किया। उसकी मृत्यु ने इतिहास के एक क्रूर अध्याय का अंत कर दिया और नाजी जर्मनी के आत्मसमर्पण की दिशा में कदम बढ़ाया।
इन अंतिम घंटों की घटनाएँ नाजी शासन की कट्टरता और हताशा को दर्शाती हैं। हिटलर की आत्महत्या और बर्लिन का पतन उस तानाशाह के अंतिम पतन का प्रतीक था जिसने दुनिया को अभूतपूर्व विनाश की ओर धकेल दिया था।