19वीं सदी के लोगों ने अपनी जिंदगी में एक ऐसी जंग भी देखी थी जो 10-20 साल नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ 3838 मिनट्स तक चली थी हिस्ट्री में ऐसा पहली बार हो रहा था कि किसी जंग की खबर कहीं तक पहुंचने से पहले ही जंग खत्म हो गई अफ्रीका में लड़ी जाने वाली एंग्लो जंजीबार वॉर को गिनीज बुक की तरफ से दुनिया की सबसे छोटी जंग होने का वर्ल्ड रिकॉर्ड भी मिल चुका है पर सवाल यह है कि एंगलो जंजवार की यह तारीखी जंग किन दो देशों के दरमियान हुई थी और महज सिर्फ पौने घंटे के अंदर-अंदर इसका फैसला कैसे हो गया यह तारीखी जंग इस आइलैंड पर हुई थी जो कि इंडियन ओशन में जंजीबार के नाम से एक आइलैंड कंट्री हुआ करती थी ईस्ट अफ्रीका के कोस्ट से सिर्फ 40 किलोमीटर दूर जंजीबार सल्तनत ओमान के कंट्रोल में हुआ करता था सब कुछ ठीक ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन फिर एंट्री हुई एक ऐसी पावर की जिसने पॉलिटिक्स के जरिए जंजीबार और ईस्ट अफ्रीका पर अपना राज चलाने की कोशिश की जी हां हम बात कर रहे हैं ब्रिटिश रूल की ईस्ट अफ्रीका समेत जंजीबार आइलैंड पर ब्रिटिश एंपायर की बहुत पहले से नजर थी उनको यहां की स्ट्रेटेजिक लोकेशन का फायदा उठाकर यहां के कीमती रिसोर्सेस को कैसे भी करके अपने कंट्रोल में लेकर आना था ब्रिटिशर्स खुद को काफी ज्यादा एडवा समझते थे खास तौर पर ईस्टर्न कंट्रीज के मुकाबले में यानी इंडिया अफ्रीका और कई अरब कंट्रीज लेकिन क्योंकि जंजीबार आइलैंड ओमान के कंट्रोल में था और ब्रिटिशर्स का यह ख्वाब तब तक पूरा ना हो पाता जब तक इसको ओमानी एंपायर के कंट्रोल से बाहर ना निकाला जाए उस वक्त ओमान के सुल्तान सैद बिन सुल्तान थे यह एक बहुत ही डर अपने असू पर किसी तरह का भी समझौता नहीं करते थे यही वजह थी कि अक्सर यह यन ऑफ ओमान के लकब से भी जाने जाते थे अब जाहिर है इनके रहते हुए ब्रिटिश एंपायर का ओमान के किसी भी हिस्से पर कब्जा करना मुमकिन नहीं था 18568 गया बड़े बेटे थवेनी बिन सैद ने ओमान का तख्त संभाल लिया और छोटे बेटे माजिद बिन सैद ने जंजीबार को ओमान से अलग करके एक नया मु बना दिया जंजीबार जो पिछली कई सदियों से ओमान का हिस्सा रहा था माजिद बिन सैद के इस फैसले से कई अरब सुल्तानों ने जंजीबार को नया मुल्क एक्सेप्ट करने से इंकार कर दिया लेकिन ब्रिटिश एंपायर के पास इससे अच्छा मौका नहीं था उन्होंने फौरन माजिद बिन सैद के सर पर अपना हाथ रखा और जंजीबार को नया मुल्क तस्लीम कर लिया कैसे भी करके ब्रिटिश एंपायर अब यहां की पॉलिटिक्स में एंटर हो चुकी थी जंजीबार की मेन सोर्स ऑफ इनकम यहां मौजूद दुनिया की आखिरी स्लेव मार्केट थी यानी वह मार्केट जहां गुलामों की ट्रेडिंग होती थी गुलामों को अफ्रीका के मेन लैंड से जंजीबार आइलैंड तक रस्सियों से बांधकर लाया जाता था शिप में अक्सर गुलाम अपनी रस्सियां खोलकर इंडियन ओशन में कूद जाते थे कई बीमार पड़ जाते थे और कई सिर्फ 40 किमी के छोटे से सफर के दौरान ही घुट करर मर जाते थे उनकी लाशों को बेदर्दी से समंदर में फेंक दिया जाता था जंजीबर में मौजूद गुलामों की मार्केट में इनको बेचा जाता था यहां छोटे-छोटे सेल्स में कई 100 गुलामों को थोड़ी सी हवा और बिना खाने पीने के बंद रखा जाता था गुलामों की बोलियां ऐसे लगती थी कि पहले उनको लाइन से खड़ा करके दरख्तों के साथ बांध दिया जाता था और फिर हर किसी को जोर-जोर से कोड़े मारे जाते थे जिसमें बर्दाश्त ज्यादा होती थी और वह कोड़े खाने के बाद भी रोता या चिल्लाता नहीं था उसके दाम ज्यादा लगते थे साल गुजरते गए और जंजीबार के सुल्तान भी बदलते गए उनका मेन इनकम सोर्स स्लेव मार्केट और सबसे बढ़कर ब्रिटिशर्स की सपोर्ट भी हासिल थी सुल्तान के लिए जंजीबार में एक आलीशान महल बनाया गया जो कि बिल्कुल सी फ्रंट पे था इस महल में सुल्तान के लिए हर वोह फैसिलिटी थी जिसको उस वक्त इमेजिन करना भी पॉसिबल नहीं था सबसे बढ़कर यह पैलेस ईस्ट अफ्रीका में वो पहली बिल्डिंग थी जिसमें इलेक्ट्रिसिटी कनेक्शन मौजूद था इस महल में ज्यादातर लकड़ी का काम हो रखा था और इसमें मौजूद तमाम बिल्डिंग्स एक दूसरे से ब्रिज के जरिए कनेक्टेड थी अब इस पॉइंट पे ब्रिटिशर्स का जंजीबार की स्लेव मार्केट को लेकर दुनिया में काफी बुरा इंप्रेशन जा रहा था क्योंकि वही तो थे जो जंजीबार के सुल्तान को सपोर्ट करते थे लिहाजा उन्होंने जंजीबार के सुल्तान पर प्रेशर डाला कि वह स्लेव मार्केट को बंद कर दें काफी कोशिशों और एग्रीमेंट्स के बाद 1873 आखिरी स्लेव मार्केट को हमेशा-हमेशा के लिए बंद कर दिया गया इस सब में एक बात तो क्लियर थी कि ब्रिटिश का जंजीबार पर कंट्रोल काफी मजबूत होता जा रहा था फास्ट फॉरवर्ड करके चलते हैं 25th अगस्ट 18960 बार के प्रो ब्रिटिश सुल्तान की अचानक मौत हो जाती है उनको अपने ही कजन खालिद बिन बरगस ने जहर देकर मारा और जंजीबार का सुल्तान बनकर बैठ गया वह भी बिना ब्रिटिशर्स की मर्जी के क्योंकि ब्रिटिशर्स चाहते थे कि अगला सुल्तान भी उनकी ही मर्जी का बने और इस काम के लिए उन्होंने हमूद बिन मोहम्मद को चुना था ब्रिटिशर्स को खालिद बिन बरगस की साजिश का इल्म हुआ तो उन्होंने उसके महल में एक पैगाम भिजवाया जिसमें सीधी सधी धमकी थी धमकी में बोला गया कि 27 अगस्ट सुबह 9 बजे तक महल खाली हो जाना चाहिए जंजीबार के नए सुल्तान खालिद ने अपनी फोर्स कट्ठी की और महल में खुद को बंद कर दिया धमकी के साथ साथ ही जंजीबार आइलैंड को ब्रिटिश नेवी की शिप्स ने चारों तरफ से घेर लिया अगली दो रातें महल में काफी टेंशन रही 27 अगस्ट की सुबह 8 बजे यानी अल्टीमेटम खत्म होने से एक घंटा पहले ब्रिटिश कांसिल के पास सुल्तान की तरफ से एक पैगाम आया जिसमें लिखा था कि वह बातचीत से मामले को खत्म करने के लिए तैयार है ब्रिटिश काउंसिल ने जवाब दिया कि बातचीत सिर्फ तब हो सकती है अगर तुम हमारे दिए हुए हुकम को मान जाओ 8:30 पे खालिद ने एक और पैगाम भेजा कि मेरा जंजीबार के तख्त को छोड़ने का कोई इरादा नहीं है और मुझे नहीं लगता कि ब्रिटिशर्स हमसे जंग लड़ने की हिम्मत करेंगे ब्रिटिश काउंसिल ने जवाब दिया कि हमारा भी हमला करने का कोई इरादा नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम हमला कर नहीं सकते इस वक्त जंजीबार के आलीशान महल के बाहर 2800 गार्ड्स मौजूद थे इसमें कुछ कुछ सिविल लोग कुछ महल के अपने गार्ड्स और कई स सुल्तान के अपने सर्वेंट्स और गुलाम भी शामिल थे इसके साथ-साथ रॉयल नेवी को टक्कर देने के लिए सुल्तान के महल के बाहर इंडियन ओशन में एक शिप भी खड़ी की गई यह उस वक्त 32000 पाउंड्स की एचएचएस ग्लासको रॉयल यार्ड थी जो 18735 म बोट्स भी ब्रिटिश रॉयल नेवी को टक्कर देने के लिए मौजूद थी ठीक 9:00 बजे जब सुल्तान को दिया गया अल्टीमेटम खत्म हुआ तो ब्रिटिश नेवी की दो क्रूजर शिप्स तीन गन बोट्स और 150 मरींस आयरलैंड की तरफ बढ़ना शुरू हुए याद रहे कि इन 150 लोगों का मुकाबला सुल्तान के 2800 गार्ड्स के साथ था ठीक 9:2 मिटों पे तीनों गन बोट्स रैकून थ्रश और स्पैरो ने महल पे अंधाधुन फायर खोल दिए पहले ही हमले में महल के अंदर 12 पाउंडर कैनन को तबाह कर दिया गया हमले में सुल्तान की रॉयल यार्ड एचएचएस ग्लासगो को भी एक ही झटके में तबाह कर दिया गया लेकिन क्योंकि वह हार्बर पर ही खड़ी थी जहां पानी कम था इसीलिए उसका ऊपर वाला हिस्सा पानी के बाहर था ग्लासगो के क्रू ने फौरन ब्रिटिश फ्लैग दिखाकर खुद को सरेंडर कर दिया ब्रिटिशर्स का प्लान था कि सुल्तान खालिद बिन बगज को अरेस्ट करके उसको इंडिया लेकर जाएंगे लेकिन पहले ही फायर पर सुल्तान अपने दूसरे अरब साथियों के साथ चोरी छुपे महल से फरार हो गया सुल्तान की 2800 की आर्मी में से 500 सोल्जर्स हैवी बंबा मेंट की वजह से मारे गए ब्रिटिश नेवी ने टोटल 500 शेल्स 4100 मशीन गन के राउंड्स और 1000 राइफल राउंड्स फायर किए थे 937 मिटों पे ब्रिटिश सोल्जर्स महल के अंदर घुस चुके थे जिस पर बचे हुए पैलेस गार्ड्स ने भी सरेंडर कर दिया ठीक एक मिनट के बाद बाद 9:3 मिटों पे ब्रिटिश मरींस ने महल की छत प लगा सुल्तान का झंडा उखाड़ दिया और यहीं पर 38 मिनटों तक चलने वाली यह जंग अपने इख्तियार की बात यह है कि जहां इस पूरी जंग में सुल्तान के 500 लोग मारे गए वहीं ब्रिटिश नेवी का सिर्फ एक सेलर जख्मी हुआ था बाद में मालूम पड़ा कि सुल्तान खालिद बिन बरगस ने जर्मन ईस्ट अफ्रीका में जाकर पनाह ली है उस वक्त ईस्ट अफ्रीका में दो बड़ी ताकतें मौजूद थी एक तो थे ब्रिटिशर्स और दूसरे थे जर्मन वहां महल पे ब्रिटिश ने कब्जा जमाने के फौरन बाद उसी दिन अपने पसंद के सुल्तान हमूद बिन मोहम्मद को जंजीबार का नया सुल्तान बना दिया इतिहास में लड़ी जाने वाली इस 38 मिनट्स की जंग ने जंजीबार में भारी ब्रिटिश रूल का एक नया सिलसिला शुरू कर दिया इसके बाद जंजीबार ब्रिटिशर्स की एक इनडायरेक्ट कॉलोनी बनकर सुल्तान हमूद बिन मोहम्मद की सरब आही में चलती रही और अगले 10 सालों में 17200 जंज बारी गुलामों को आजाद करके जंजीबार के कोने-कोने से स्लेव कल्चर को जड़ से उखाड़ दिया गया 18th और 19th सेंचुरी में ब्रिटिश ने जिन-जिन मुल्कों पर कब्जा करके उनको अपनी कॉलोनी बनाया था इससे ह्यूमन सिविलाइजेशन को फायदा हुआ या नुकसान आपकी इस बारे में क्या राय है.