साल था 1983 जब आर्कियोलॉजिस्ट्स की एक टीम गुजरात के ढाबरी गांव के पास अब सागर में कुछ एक्सप्लोर कर रही थी समुद्र की 130 फिट की गहराई में जान के बाद वह जो देखते हैं वह सचमुच चौका देने वाला था वो बिना डेरी किया बाहर आते हैं और अपने बस को फोन लगाते हैं कुछ डर तक रिंग जान के बाद उधर से आवाज आई है इसके बाद कोई आवाज नहीं आई क्योंकि हैरान परेशान आर्कियोलॉजिस्ट बिना रुक वो हाल सुनाना शुरू करते हैं जो उन्होंने समुद्र में देखा और उसे सुनते ही बस के हाथ से फोन छठ जाता है आखिर उन्होंने समुद्र में ऐसा क्या देख लिया की उन्हें ठंड में भी पसीने ए गए जिससे जानकर बस भी कुछ भूल नहीं पे जन के लिए चलिए हमारे साथ अब सागर की इस गहराई में समुद्र में उठाती इन लहरों को देखिए जिम जितना शोर है उसके अंदर पसारा है उतना ही सन्नाटा और इस सन्नाटे में दफन है ना जान नहीं रहस्य समुद्र के नीचे आज भी कई ऐसे राज दबे हैं जिनके बड़े में किसी को कुछ नहीं पता कुछ सालों पहले अब सागर की गहराई में ऐसी ही एक साइड खोजी गई जिसे देखकर हर कोई हैरान था दरअसल वो एक भारी पुरी नगरी थी ऐसी नगरी जो इतनी खूबसूरत थी की जिसे कोई एक बार देख ले तो बस देखते ही र जाए ऊंची ऊंची दीवारों बड़े-बड़े गेट और उन पर की गई नक्काशी सड़के भाव महल पूरा वेल प्लेन शहर जो आज के शेरों को भी पीछे छोड़ दे समुद्र की गहराईयां में ऐसी नगरी देखकर आर्कियोलॉजिस्ट हैरान थे आखिर ये नगरी यहां पहुंची कैसे और ये कितनी पुरानी है यह अब सवाल उनके मां में भी थे जिनका जवाब ढूंढने के लिए उन पत्थरों के सैंपल लिए गए और कार्बन डेटिंग से पता चला की वो पत्थर महाभारत कल के है और यह वही नगरी है जिसके बड़े में महाभारत में भी बताया गया है यानी श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका नगरी जिसे भगवान श्रीकृष्ण ने समुद्र किनारे बसाया था अब आप कहेंगे की हमें कैसे पता की यही द्वारका है इसका क्या प्रूफ है क्योंकि द्वारका जो गुजरात के जामनगर जिले में अब सागर के तट पर बस एक छोटा सा शहर है जिसे भगवान विष्णु के कर धमौन में से एक माना जाता है जहां हजारों कृष्णा भक्ति दूर-दूर से दर्शन के लिए आते हैं अगर वो द्वारका है तो फिर ये क्या है दरअसल श्रीमद् भागवत पुराण के 10वें अध्याय के अनुसार कंस का वध करने के बाद भगवान श्री कृष्णा यादव वंश के साथ मथुरा में रहने लगे लेकिन कंस की मौत का बदला लेने के लिए उसके ससुर जरासंध ने मथुरा पर एक या दो बार नहीं बल्कि पूरे 17 बार अटैक किया बार-बार हो रहे इन आक्रमणों से ना केवल मथुरा की प्रजा परेशान थी बल्कि श्रीकृष्ण भी दुखी
हो चुके थे इसीलिए उन्होंने अपनी प्रजा की रक्षा के लिए मथुरा से कई दूर जाना ही सही समझा और वो अपने परिवार और पुरी प्रजा के साथ मथुरा से 1285 किमी दूर अब सागर किनारे जा पहुंचे और उन्होंने विश्वकर्मा को समुद्र के ऊपर एक नगरी बनाने का आदेश दिया लेकिन समुद्र देव की मर्जी के बिना ये पॉसिबल नहीं था इसलिए भगवान श्री कृष्णा ने समुद्र देव की पूजा की जिससे खुश होकर समुद्र देव ने अब सागर के बिशन बीच 12yojan यानी गरीब 153.
6 किलोमीटर धरती गिफ्ट की इसी भूमि पर भगवान विश्वकर्मा ने विशाल द्वारका नगरी का निर्माण किया ये एक ऐसी नगरी थी जो आज की वेल प्लेन सिटीज को भी मान दे शक्ति थी ऊंची दीवारों बड़े दरवाजे बगीचे तालाब सोनी के महल सब कुछ बेहद ही खूबसूरत तरीके से बनाया गया था और इसी नगर के बिशन बीच था श्री कृष्णा का महल जो आलीशान था पूरे यादव वंश और पुरी प्रजा को यहां पर बेसन के बाद श्रीकृष्ण वापस मथुरा गए और जरासंध से युद्ध किया उनका वध करने के बाद वो अपने परिवार के साथ हंसी खुशी रहने लगे लेकिन कहते हैं ना यहां कुछ भी कांस्टेंट नहीं राहत सुख दुख आता राहत है और श्रीकृष्ण भी इसी चक्र का हिस्सा थे
दरअसल कुछ समय के बाद पांडवों और गौरव के बीच युद्ध शुरू होता है जिसमें भगवान कृष्णा अर्जुन के सारथी बने 18 दोनों के भीष्म युद्ध के बाद आखिरकार पांडवों की जीत हुई और यही से शुरुआत हुई खूबसूरत नगरी द्वारका के सर्वनाश की दरअसल महाभारत के स्त्री पाव के अकॉर्डिंग माता गांधारी ने जब अपने 100 पुत्रों के व देखें तो वो ये दुख नहीं सा पे और उन्होंने भगवान कृष्णा को अपने बेटों की मौत का जिम्मेदार ठहरते हुए उन्हें श्राप दे दिया यह जैसे उसके वंश का विनाश हुआ है की एक वैसे ही 36 साल बाद तुम्हारे वंश का भी ऐसे ही विनाश होगा श्रीकृष्ण इसके बड़े में पहले
से जानते थे इसीलिए उन्होंने माता गांधारी की श्राप को आशीर्वाद समझकर एक्सेप्ट कर लिया इसके अलावा एक और श्राप था जो यादव वंश के विनाश का करण बना एक बार की बात है जब द्वारका के पास बेस पवित्र स्थल पिंडारक में कई ज्ञानी साधु संत आए हुए थे उन्हें देखकर श्री कृष्णा के पुत्र सामने अपने दोस्तों के साथ मिलकर ऋषि मुनियों के साथ शरारत करने की सोची फिर क्या था सामने एक गर्भवती स्त्री का भविष्य बदला और पहुंच गया साधु संतो के पास वहां जाकर उसने ऋषि मुनियों से अपने होने वाले बच्चे के बड़े में पूछा ऋषि मनी अपने साथ हो रहे इस मजाक से क्रोधित हो गए और उसने शाम को
श्राप दे दिया की वो एक लोहे के मुसलमान को जन्म देगा जो यादव वंश के विनाश का करण बनेगा अब श्राप तो एक ही भारी होता है यहां तो दो मिल चुके थे और थोड़ी डर बाद शाम के कपड़ों से एक लोहे का मौसम मिला जब श्री कृष्णा के नाना उग्रसेन को इस पुरी कहानी का पता चला तो उसने उसे लोहे के मुसलमान के टुकड़ेगी और उन्हें समुद्र में फेक दिया यही उन्हें ये गलतफहमी हो गई की ऐसा करने से उन्होंने यादव वंश को इससे श्राप से बच्चा लिया क्योंकि जैसे ही उग्रसेन मोजल के टुकड़ों को समुद्र में फेंकते तो उन्हें एक मछली निगल ले दी और फिर वो मछली मच्छरों के दाल में जब फस्ती
जब उन्हें जरा ज्यादा तो उनके पेट से इस लोहे के मुसलमान के टुकड़े निकलते हैं एक शिकारी और लोहे के टुकड़ों से जहरीले तीर बना लेट है और ऐसे टुकड़े टुकड़े होने के बाद भी ये लोहे कौशल एक बार फिर तैयार हो जाता है यादव वंश के विनाश के लिए लेकिन कैसे दरअसल 36 साल बीट चुके थे और वह समय ए चुका था जब माता गांधारी की श्राप को सच साबित होना था पूरा यादव वंश नसे की लट में डब चुका था धीरे-धीरे उन्होंने आपस में ही लड़ना शुरू कर दिया फिर क्या था अंदर ही अंदर यादव वंश में युद्ध छिड़ गया भाई-भाई को करने लगा और धीरे-धीरे पूरे राजवंश का विनाश हो गया ये सब देखकर बलराम
जी ने धरती का त्याग कर दिया और इस श्री कृष्णा जी जंगलों की तरफ निकाल पड़े कुछ डर चलने के बाद वो एक पीपल के पेड़ के नीचे जाकर ले गए तभी एक शिकारी ने उन्हें हिरण समझकर उन पर तीर चला दिया ये वही शिकारी था जिसने मछली के पेट से निकले टुकड़ों से तीर बनाया और ये वही जहरीला तीर था जो लोहे के मौसम से बना था जैसे ही ये जहरीला तेरे श्री कृष्णा को लगा तो उनकी मौत हो गई और उन्हें के साथ पूरा यादव वंश खत्म हो गया पहुंचे लेकिन तब तक वहां सब कुछ खत्म हो चुका था पुरी द्वारका आज में जल रही थी इसके बाद अर्जुन ने जैसे-तैसे खुद को
संभाल और जलती हुई नगरी से लोगों को बाहर निकाल दिया खाली होते ही द्वारका नगरी हमेशा के लिए समुद्र में सम गए अब आपका द्वारका को लेकर जो कन्फ्यूजन है उसको भी दूर करते हैं दरअसल आज द्वारका को दो हसन में बंता गया है द्वारका और वेट द्वारका समुद्र के किनारे बस एक छोटा सा शहर है और बेट द्वारका अब सागर के बीच बस एक द्वीप काफी सालों तक तो बेट द्वारका को माइथॉलजी या पौराणिक कथा मानकर नेगलेक्ट किया जाता रहा इसका रीजन ये था की हमारे पास ऐसा कोई प्रूफ नहीं था जो पौराणिक कथाओ में शामिल इस खूबसूरत सी नगरी को असली साबित कर सके
1930 में अब सागर में खोज की गई और इस दौरान पेट द्वारका के कई अवशेष मिले फिर 193 में इस आयरलैंड पर खुदाई की गई तो कई पुरानी मूर्तियां और आर्टीफैक्ट हाथ लगे फिर कई इंटरेस्टिंग थ्योरी सामने आई जो इस बात का सबूत थी की श्रीकृष्ण बेट द्वारका में अपने परिवार के साथ रहते थे लेकिन ये छानबीन यही खत्म हुई और 1982 से 1990 के बीच अंडरवाटर आर्कियोलॉजिस्ट डॉक्टर सर राव और उनकी टीम ने इस मिशन को कंप्लीट करने का बीड़ा उठाया ये टीम काफी दोनों तक कुछ भी रहे इसके बाद उन्हें पानी के नीचे एक खूबसूरत नगरी की अवशेष मिले लेकिन यहां
पर भी सवाल वही था की क्या सच में समुद्र के गहराई में जो अवशेष मिले हैं वो श्री कृष्णा की नगरी द्वारका की ही थे इसका पता लगाने के लिए आर्कियोलॉजिस्ट ने उन पत्थरों की कार्बन डेटिंग की कार्बन डेटिंग से करीब 50000 साल पुराने किसी अवशेष के बड़े में पता लगाया जा सकता है की वो किस युग का है डॉक्टर नरहरि आचार्य ने महाभारत में मेंशन गेहूं की स्थिति यह कैलकुलेट किया की महाभारत का युद्ध 31120bc में बस हुआ था और महाभारत के अनुसार इस युग में ही द्वारका का भी निर्माण हुआ जब पत्थरों के कार्बन डेटिंग की गई तो पता चला की ये पत्थर इस समय के है लेकिन पत्थरों का क्या है वो तो किसी भी युग के हो सकते हैं और इससे ये कैसे पता चला की ये द्वारका के ही अवशेष है इस बात को प्रूफ करने के लिए आर्कियोलॉजिस्ट स्कूल गए अब सागर में और समुद्र में मिली ऐसी नगरी का एरिया मापन शुरू कर दिया और शायद आपको जानकर हैरानी होगी की इस नगरी का मेजर मेट बार है यू जान यानी 153.6 किलोमीटर का था भागवत पुराण के अनुसार ये उतनी ही जमीन थी जितनी समुद्र देव ने श्रीकृष्ण को द्वारका बचाने के लिए दी थी और ये इस बात का सबूत था की ये श्रीकृष्ण की नगरी द्वारका है और समुद्र के नीचे आज भी ये खुदाई जारी है तो ये थी कहानी श्री कृष्णा की नगरी द्वारका नगरी की उम्मीद है आपको इससे काफी कुछ सीखने को मिला होगा भरत वीडियो पसंद आए तो लाइक करें शेर करें और हां चैनल को सब्सक्राइब जरूर करें धन्यवाद