हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए बम्स ने 15 किलो टन टी एनटी के बराबर धमाका किया था इस ब्लास्ट ने जितनी रेडियो एक्टिव गैसेस एटमॉस्फेयर में फैलाई थी उससे 400 टाइम्स ज्यादा गैसेस एक ऐसे हादसे की वजह से रिलीज हुई थी जहां आज यह बहुत बड़ा डोम देखा जा सकता है 354 फीट ऊंचा और 840 फीट चौड़ा यह डोम इतिहास के उस हादसे के ऊपर पर्दा डाले हुए हैं जिसने अमेरिका के सबसे बड़े दुश्मन सोवियत यूनियन को भी बोखला हट में डाल दिया था यह धमाका चेर्नोबिल न्यूक्लियर डिजास्टर के नाम से जाना जाता है जहां एक छोटी सी गलती की वजह से हैरत अंगेज तौर पे 225 टन टीएनटीआरबी नाजरीन चनोफिल न्यूक्लियर प्लांट यूक्रेन के कैपिटल कीव से 100 किमी दूर प्रीपेड सिटी में मनाया गया था जो आज पूरी तरह से बंद ंर पड़ी हुई है उस वक्त यूक्रेन भी सोवियत यूनियन का हिस्सा हुआ करता था जैसा कि आप सब जानते हैं यह कोल्ड वॉर का दौर था और सोवियत यूनियन ने न्यूक्लियर एनर्जी को इस्तेमाल करते हुए कई सारे पावर प्लांट्स बनाना शुरू कर दिए थे जिनमें से एक नोबल भी था यह पावर प्लांट चार न्यूक्लियर रिएक्टर्स पर मुश्त मिल था जिनको 1 2 3 और फोर के नाम दिए गए थे
यह फोर नंबर वाला सबसे आखिर में बनाया गया था जिसके ऊपर आज एक बहुत बड़ा डोम मौजूद है यह चारों रिएक्टर्स 11000 मेगावाट इलेक्ट्रिसिटी प्रोड्यूस करने की काबिलियत रखते थे जो उस वक्त पूरे सोवियत यूनियन की आधी पापुलेशन की इलेक्ट्रिसिटी डिमांड्स को पूरा करते थे आसान लफ्जों में अगर इन रिएक्टर्स की वर्किंग समझी जाए तो इनमें न्यूक्लियर रिएक्शन के जरिए पानी को गर्म किया जाता था यह पानी स्टीम बनकर टर्बाइन को चलाता था और टरबाइन के घूमने की वजह से इलेक्ट्रिसिटी प्रोड्यूस्ड होती थी लेकिन क्योंकि न्यूक्लियर रिएक्शन एक चेन रिएक्शन होता है यानी यह एक बार स्टार्ट हो जाए तो फिर इसको कंट्रोल नहीं किया जा सकता इसीलिए इस न्यूक्लियर रिएक्शन को कंट्रोल करने के लिए हर रिएक्टर में 211 कंट्रोल रॉड्स डाली जाती थी ये कंट्रोल रॉड्स एक ऐसे मटेरियल से बनी होती हैं जो न्यूक्लियर रिएक्शन के दौरान रिलीज होने वाले न्यूट्रॉनस को एब्जॉर्ब करती हैं क्योंकि वो न्यूट्रॉनस ही हैं जो यूरेनियम के एटम से मिलकर न्यूक्लियर रिएक्शन पैदा करता है जब न्यूट्रॉनस यूरेनियम के बजाय कंट्रोल रॉड से जाकर चिपक जाएंगे तो जाहिर है न्यूक्लियर रिएक्शन भी अपने आप धीमा पड़ जाएगा चरनो बिल के केस में यह कंट्रोल रॉड्स बोरनन कार्बाइड की बनी थी जबकि इनकी टिप ग्रेफाइट की थी याद रहे कि यह प्रोसेस 247 चलता रहता था जिसकी वजह से रिएक्टर के अंदर 1600 डिग्री सेल्सियस का टेंपरेचर हो जाता था यह सूरज के सरफ फेस के टेंपरेचर का करीब 30 पर टेंपरेचर बनता है और इसी वजह से रिएक्टर को ठंडा रखना भी बहुत जरूरी था इस काम के लिए रिएक्टर के अंदर पानी की लाइंस को चलाया जाता था यह पानी पंप्स की मदद से रिएक्टर में हर वक्त घूमता रहता था ठीक उसी तरह जैसे गाड़ी के इंजन को ठंडा रखने के लिए कूलेंट का इस्तेमाल किया जाता है यहां पर चेर्नोबिल के रिएक्टर्स में एक बहुत बड़ा डिजाइन फ्लॉस अंदाजा शायद किसी को भी नहीं था
गाड़ी के केस में तो पानी की रोटेशन तब बंद हो जाती है जैसे ही इंजन ऑफ होता है पर न्यूक्लियर रिएक्टर में एक भी सेकंड के लिए पानी की रोटेशन बंद नहीं होनी चाहिए फिर बेशक न्यूक्लियर रिएक्शन बंद ही क्यों ना हो जाए क्योंकि रिएक्शन बंद होने के बाद भी काफी देर तक वह हीट प्रोड्यूस करता रहता था इसके लिए जरूरी था कि यह वाटर पंप्स बिना किसी रुकावट के हर वक्त चलते रहे अब जाहिर है यह वाटर पंप्स चलाने के लिए भी इलेक्ट्रिसिटी रिक्वायर्ड थी यह इलेक्ट्रिसिटी नॉर्मली रिएक्टर के अपने ही टरबाइन से फराह की जाती थी जबकि पावर फेलियर की सूरत में इनके लिए खास बैकअप डीजल जनरेटर भी इंस्टॉल किए गए थे पर मसला यह था कि डीजल जनरेटर पे शिफ्ट होने में वाटर पंप्स 60 सेकंड्स तक बंद रहेंगे इंजीनियर्स चाहते थे कि इन 60 सेकंड्स के दौरान भी यह पंप्स बंद ना हो लिहाजा इसके लिए इनमें एक सेफ्टी सिस्टम लगाया गया था सिस्टम यह था कि जैसे ही रिएक्टर बंद होगा वो इलेक्ट्रिसिटी बनाना फौरन खत्म नहीं करेगा 1000 मेगावाट से प्रोडक्शन आहिस्ता आहिस्ता कम होती जाएगी तो इसी दौरान इस बची हुई इलेक्ट्रिसिटी से ही पंप्स को 60 सेकंड्स तक चलाया जाएगा और 60 सेकंड्स के बाद वैसे ही बैकअप जनरेटर चल जाएंगे यह सिस्टम तो इंस्टॉल कर दिया गया था लेकिन इसकी टेस्टिंग अभी बाकी थी जो कि एक कंपलसरी प्रोसेस था और वो भी सिर्फ रिएक्टर फोर की टेस्टिंग वन टू और थ्री पर यह टेस्ट कामयाबी से किए जा चुके थे यह 25th अप्रैल 1986 की शाम थी और रिएक्टर 4 पर इसी सेफ्टी टेस्ट को परफॉर्म करने की तैयारी चल रही थी यह टेस्ट डेप्युटी चीफ इंजीनियर एनाटोली डेटलफ की निगरानी में किया जा रहा था पिछली दो बार रिएक्टर 4 पर यह टेस्ट कामयाब नहीं हो सका था कहा जाता है कि डेप्युटी चीफ इंजीनियर को कैसे भी करके आज की रात यह टेस्ट परफॉर्म करना था रूल बुक के मुताबिक यह टेस्ट तब परफॉर्म किया जाएगा जब रिएक्टर 700 मेगावाटस की पावर दे रहे होंगे लेकिन नॉर्मली तो यह 1000 मेगावाट देते थे डेप्युटी चीफ इंजीनियर ने रिएक्टर को स्लो करने के लिए कंट्रोल रॉड्स डालने का ऑर्डर दिया जिससे न्यूक्लियर रिएक्शन स्लो होना शुरू हो गया यहां तक सब कुछ नॉर्मल चल रहा था लेकिन कंट्रोल रॉड्स शायद ज्यादा अंडर डल गई थी इसी वजह से रिएक्टर की पावर 1000 से सीधा 30 मेगावाट तक जा गिरी रिएक्टर की पावर को वापस बढ़ाने के लिए कंट्रोल रॉड्स को थोड़ा बाहर निकाला गया तब यह पावर 30 से बढ़कर 200 मेगावाटस तक जा पहुंची पावर को मजीद बढ़ाने के लिए थोड़ी और कंट्रोल रॉड्स को बाहर निकाला गया अब टोटल 20011 में से सिर्फ आठ कंट्रोल रॉड्स रिएक्टर के अंदर मौजूद थी और यह रू बुक की वायलेशन थी रूल बुक में लिखा था कि रिएक्टर के अंदर 15 से कम कंट्रोल रॉड्स नहीं होनी चाहिए इस वायलेशन की वजह से हुआ यूं कि रिएक्शन तेजी से बढ़ा और पावर 200 से बढ़ती बढ़ती 1000 मेगावाट को भी क्रॉस करके कई हजार मेगावाट तक जा पहुंची इतनी ज्यादा हीट की वजह से पाइप्स में पानी तेजी से इवेपरेट होने लगा जो कि असल में रिएक्टर के कोर को ठंडा करने का काम भी कर रहा था इसी समय कंट्रोल रूम में फौरन एक खौफ की लहर दौड़ गई और पूरा रिएक्टर वाइब्रेट करना शुरू हो गया इस चीज को कंट्रोल करने का एक ही सॉल्यूशन था कि इमरजेंसी शट ऑफ बटन को दबा दिया जाए जिससे सारी कंट्रोल रॉड्स रिएक्टर में जाकर न्यूक्लियर रिएक्शन को बंद कर देंगी और इंजीनियर्स ने भी यही किया था उन्होंने फौरन इमरजेंसी शटडाउन का बटन तो दबा दिया लेकिन जैसे ही कंट्रोल रॉड्स अंदर गई रिएक्टर एक जोरदार धमाके से फट पड़ा साइजो ग्राम में इस धमाके की शिद्दत 225 टन टी एनटी ब्लास्ट के बराबर रिकॉर्ड की गई कंपैरिजन के तौर पर आपको बताते चलें कि हिरोशिमा पर गिराए जाने वाले न्यूक्लियर बॉम लिटिल बॉय ने जितनी खतरनाक गैसेस एटमॉस्फेयर में रिलीज की थी यह डिजास्टर उससे 400 टाइम्स ज्यादा गैसेस रिलीज कर चुका था इस वक्त 26 अप्रैल 1986 रात के 1 बजे ब 26 हो रहे थे यहां सवाल उठता है कि कंट्रोल रॉड्स तो रिएक्शन को स्लो डाउन करने के लिए डाली गई थी तो फिर इन्होंने रिएक्शन को बढ़ा क्यों दिया असल में यह धमाका कंट्रोल रॉड्स की टिप पर लगे ग्रेफाइट की वजह से हुआ था जैसा कि आपने शुरुआत में जाना यह कंट्रोल रॉड्स बोरनर बाइट की बनी थी लेकिन इनकी टिप ग्रेफाइट की थी बोन कार्पा इट तो न्यूक्लियर रिएक्शन को रोक सकता है लेकिन ग्रेफाइट रिएक्शन को मजीद बढ़ा देता है इमरजेंसी शट डाउन बटन दबाने से पहले जो रिएक्शन पहले ही अपनी लिमिट से बाहर था उसमें ग्रेफाइट की टिप जाते ही तेजी आई और रिएक्टर की वॉल्स का बर्दाश्त का लेवल खत्म हुआ और वह फट पड़ी दो इंजीनियर्स मौके पर ही मारे गए और दो लोग बुरी तरह से जल गए धमाके की वजह से प्लांट के रिएक्टर फर में आग लग गई पहले तो इसे आम आग ही समझा गया क्योंकि कोई नहीं जानता था कि इस धमाके की वजह से 5 पर रेडियोएक्टिव मटेरियल एटमॉस्फेयर में जा चुका है फायर फाइटर्स मौके पर ही पहुंच गए पानी की मदद से आग बुझाने की कोशिश की गई मगर यह आग बुझने वाली नहीं थी क्योंकि यह आम आग नहीं बल्कि ग्रेफाइट की आग थी जिसको बुझाना इतना आसान नहीं था हादसे के फौरन बाद पूरे प्रिपेयर्ड शहर को रातों-रात खाली करवा दिया गया जिसमें उस वक्त करीब 50000 लोग बसते थे इमरजेंसी डिक्लेयर करके सोवियत यूनियन ने कई 100 बसेस का इंतजाम किया जो इस शहर के लोगों को यहां से बहुत दूर स्लोव दिच सिटी में ले गई वहां नोबल में अगले 10 दिनों तक यह आग बुझाने का काम चलता रहा हेलीकॉप्टर्स की मदद से भी 5000 टन से ज्यादा रेत मट्टी और ऐसी चीजें फेंकी गई जिससे आग पर काबू पाया जा सकता है आखिरकार 10 दिन बाद जाकर यह आग बुझाई गई लेकिन अगले कई दिनों तक मुसलसल रेडियो एक्टिव गैसेस एटमॉस्फेयर में जाती रही फायर फाइटर्स जो आग बुझा रहे थे वह रेडियो एक्टिव गैसेस की वजह से बीमार हो गए और कुछ लोग आने वाले दिनों और कुछ आने वाले महीनों में चल बसे पहले तो सोवियत यूनियन इस वाक की खबर को दबाना चाहता था क्योंकि कोल्ड वॉर का दौर था और यह खबर सोवियत यूनियन का इंप्रेशन बुरी तरह खराब कर सकती थी लेकिन यह राज ज्यादा देर तक छुप ना सका धमाके के 36 घंटों के बाद 28 अप्रैल को स्वीडिश रेडिएशन मॉनिटरिंग स्टेशन ने देखा कि हवा में रेडिएशन का लेवल मुसलसल बढ़ रहा है और यह रेडिएशंस यूक्रेन की तरफ से आ रही हैं इसी वजह से आखिरकार सोवियत हुकूमत को मामला दुनिया के सामने रखना ही पड़ा नोबल के रिएक्टर फोर में लगी आग बुझाने के बाद भी खतरा अभी तक पूरी तरह से टला नहीं था रिएक्टर के नीचे पानी का एक पूल था जिसमें बहुत बड़ी मिकर में में रेडियोएक्टिव मटेरियल जा चुका था अगर वक्त पर इसको खाली ना किया गया तो इस पानी की स्टीम हवा में मजीद रेडियोएक्टिव गैसेस फैला देगी इसको खाली करने का एक ही तरीका था कि इसके अंदर कोई कूद कर जाए और पूल के बॉटम पर इसका ड्रेन वॉल्व खोल दे पर इस रेडियोएक्टिव पानी में जाने का मतलब सीधा-सीधा अपनी जान दाव पर लगाने जैसा ही था और यह काम करने के लिए कोई भी राजी नहीं हुआ यहां पर सामने आए तीन हीरोज बल्कि सुपर हीरोज मैकेनिकल इंजीनियर अलेक्सी एनन इंको सीनियर इंजीनियर लेरी बेसमल और शिफ्ट सुपरवाइजर बॉरिस बरनोव इन्होंने अपनी जान को खतरे में डालकर दूसरों को बचाने का फैसला किया यह तीनों ड्राइवर्स उस पूल में उतरे और अंधेरे में स्विम करते हुए उसके ड्रेंस को खोला और पानी को खाली करके रिएक्शन रोक दिया इनके इस मिशन को कई लोगों ने सुईसा इड मिशन कहा था लेकिन खुशकिस्मती से यह तीनों सही सलामत बाहर निकल आए मगर अभी तक बहुत नुकसान हो चुका था धमाके के नतीजे में आयोडीन 131 और दीगर खतरनाक केमिकल्स हवा में फैल चुके थे जिसकी वजह से हजारों लोगों को थायराइड कैंसर हो गया और कई हजार लोग इसकी वजह से मारे गए इनमें ज्यादातर वो लोग थे जिनका ताल्लुक फायर फाइटिंग टीम से था और जिन्होंने बाद में चनो बिल में ऑपरेशन क्लीनअप में हिस्सा लिया था इसके साथ-साथ इन केमिकल्स ने पूरे यूरोप में बड़ी तबाही मचाई जिन जंगलात में यह रेडियो एक्टिव वेस्ट गिरा वो ग्रीन से रेड हो गए बारिश के साथ यह केमिकल्स जहां-जहां गिरे वहां की घास में भी यह वेस्ट फैल गया और व घास जिन जानवरों ने खाया उनको भी काफी नुकसान हुआ इस हादसे के पहले चार महीनों में सिर्फ 31 लोग मारे गए लेकिन इसकी वजह से जो रेडिएशंस हवा में गई उसने आने वाले चंद सालों में तकरीबन 4000 लोगों की जान ले ली यह तो वह फिगर है जो सिर्फ एक एस्टीमेट है असल में इसकी वजह से कितनी अमवा हुई होंगी इसका अंदाजा लगाना भी काफी मुश्किल है आज नोबल डिजास्टर की साइट पर आम पब्लिक को जाने की इजाजत नहीं है क्योंकि आज 38 इयर्स के बाद भी कुछ ना कुछ रेडिएशंस वहां से निकल ही रही है और यह अगले 400 सालों तक नुकसान पहुंचाती ती रहेगी यह रेडिएशंस हवा में ना फैले इसी वजह से हुकूमत ने इसके ऊपर एक बहुत बड़ा डोम इंस्टॉल किया है जिसको बनाने में करीब 3 अरब यूएस डॉलर्स का खर्चा आया था और यह अगले 100 सालों तक चेर्नोबिल डिजास्टर की रेडिएशंस को एटमॉस्फेयर में फैलने से रोके रखेगा उम्मीद है.