आपको यह बात जानकर हैरत होगी की दुबई की किस्मत बदलने की शुरुआत सिर्फ 440 से हुई थी 1937 में दुबई भी ब्रिटिश कंट्रोल में होता था और ब्रिटिश इंडिया की तरह यहां पर भी इंडियन रूपी ई ही चलती थी ब्रिटिशर्स को दुबई की स्टडी चेक लोकेशन ट्रैवल करने के लिए हाथ से बहुत आइडिया ग रही थी क्योंकि यह यूरोप अफ्रीका और एशिया के ठीक सेंटर में मौजूद है ब्रिटिश इंपीरियल एयरवेज दुबई के समंदर में फ्लाइंग वोट्स की बेस बनाना चाहते थे और फिर उन्होंने दुबई के साथ एक एग्रीमेंट साइन कर लिया लॉन्ग रेंज अंपायर फ्लाइंग बोर्ड्स यूके से दुबई के समंदर में लैंड करती थी और फिर रिफ्यूलिंग के बाद उनको ब्रिटिश इंडिया और एशिया के दूसरे हसन में भेजो जाता था इस बेस का मंथली रेंट सिर्फ 440 था जिसमें वहां मौजूद गॉड्स की सैलरी भी शामिल थी कौन जानता था की कुछ ही सालों के बाद यह दुनिया के सबसे बीजी विस्फोट में कन्वर्ट हो जाएगा और यहां की अपनी एयरलाइन अच्छे अकों को टक्कर दे पाएगी एमिरेट्स एयरलाइन को किस मुश्किल घड़ी में बनाने का फैसला किया गया और आखिर एक छोटी सिटी से उभरते वाली ये एयरलाइन इतने कम वक्त में पुरी दुनिया की सबसे बड़ी एयरलाइन कैसे बन गए. 1950 में दुबई के रोलर शेख राशिद बिन शहीद अल मकतूब को अच्छी तरह मालूम था की उनके पास तेल के जितने रिजर्व्स हैं वो सिर्फ 30 से 40 साल ही चल सकते हैं उनको जल्द से जल्द कोई अल्टरनेट इनकम सोर्स बनाना था उन्होंने देखा की ब्रिटिशर्स दुबई की लोकेशन को इस्तेमाल करके अपनी एयरलाइंस को एक स्टॉप ओवरफ्राम कर रहे हैं और दुबई को सिर्फ मामूली सा रेंट ही मिलता है यही देखते हुए दुबई के रोलर ने 1959 में दुबई एयरपोर्ट की कंस्ट्रक्शन का आगाज किया

1960 में दुबई एयरपोर्ट पहले बार लॉन्च किया गया तो इसमें सिर्फ एक अपरण एक छोटे कमरे जैसा टर्मिनल और एक रनवे होता था वो भी पक्का नहीं बल्कि रेट को कंप्रेस करके बनाया गया था इस रनवे पर सिर्फ छोटे डगलस dc3 जैसे एयरक्राफ्ट्स ही लैंड कर सकते थे 1965 में प्रॉपर मेटल रनवे बनवाने के बाद दुबई एयरपोर्ट पर लैंड करने वाला पहले जेट एयरक्राफ्ट मिडिल ईस्ट एयरलाइंस का कमेंट था हर गुजरते साल दुबई के रोलर एयरपोर्ट में नई और लेटेस्ट फैसेलिटीज लॉन्च करवाने लगे 1969 में यहां नो एयरलाइंस कम कर रही थी जो 20 डेस्टिनेशंस ऑफर करती थी और 1980 में दुबई एक इंटरनेशनल स्टॉप ओवर बनकर उभरते लगा जहां और इंडिया कैफे पेसिफिक सिंगापुर एयरलाइंस और मलेशिया एयरलाइंस जैसे नाम रिफ्यूलिंग करने के लिए रुकते थे दुबई से पहले इस रीजन में यह तमाम फ्लाइट्स पाकिस्तान के कराची इंटरनेशनल एयरपोर्ट पे रिफिलिंग के लिए रुकती थी और देखते ही देखते दुबई अपने कराची एयरपोर्ट की साड़ी ट्रैफिक अपनी तरफ अट्रैक्ट कर ली उसे वक्त पूरे मिडिल ईस्ट के दरमियां ट्रैवल करने के लिए गर्ल्स और को इस्तेमाल किया जाता था जो की बहरीन की एयरलाइन है पूरे मिडिल ईस्ट को अगर अच्छी इंटरनेशनल फ्लाइट्स लेनी होती थी तो वो पहले गल्फ और के जारी दुबई आते थे और फिर वहां से अपने इंटरनेशनल सफर का आगाज करते थे 1980 में दुबई के शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मकतूब जो उसे वक्त दुबई के डिफेंस मिनिस्टर थे उनको गल्फ और ने ऑफर दी के वह सिर्फ यह अनाउंस कर दें की गल्फ और दुबई की ऑफिशल एयरलाइन है इससे गल्फ और को इंटरनेशनल फ्लाइट्स भी मिलन शुरू हो जाएगी और उससे दुबई को भी काफी फायदा होगा और बदले में दुबई को गल्फ और के 50% स्टॉक्स भी मिल जाएंगे पर शेख मोहम्मद ने इस डील से इनकार कर दिया गल्फ और में सोचा की हम खामखा पूरे मर्डर इससे पैसेंजर लाकर दुबई को देते हैं और वो पैसेंजर किसी और इंटरनेशनल फ्लाइट रूप में चले जाते हैं जिसके बदले में हमें कुछ नहीं मिलता लिहाजा गल्फ और ने शेख मोहम्मद के माना करने के बाद दुबई जान वाली तमाम फ्लाइट्स को बैंड कर दिया गल्फ और का यह फैसला दुबई के इंटरनेशनल स्टोपोवर को खास नुकसान पहचाने लगा यही वो वक्त जब शेख मोहम्मद बिन राशिद ने अपनी खुद की एयरलाइन एमिरेट्स लॉन्च करने का इरादा किया इस इरादे को हकीकत में बदलने का मतलब था पहले से इस्टैबलिश्ड एयरलाइंस से टक्कर लेना जिसमें गल्फ और जो उनका पहले राइवल था इसके अलावा ब्रिटिश एयरवेज सिंगापुर एयरलाइंस लॉफ्ट हिंसा और इंडिया एयरवेज वो बड़े-बड़े नाम थे जिनके खिलाफ एमिरेट्स को ऑपरेट करना था अब ये कम जितना सुनने में मुश्किल ग रहा है यह हकीकत में इससे भी कहानी ज्यादा मुश्किल था उसे वक्त एक बोईंग 737 की प्राइस 25 मिलियन डॉलर्स थी इसके अलावा पायलेट्स करू और इंजीनियर भी ट्रेन करने थे इसमें अलग से खर्चा ग यानी कल मिलकर दुबई को एक नई एयरलाइन पर कम से कम 6 से 7 करोड़ डॉलर्स खर्च करना पद रहे थे और उसके बाद भी क्या पता एयरलाइन चले या नहीं यहां पर दुबई के शेख ने स्मार्टली खेल और पाकिस्तान से मदद मांगी पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन दुबई को 2 बोईंग 737300 लेज भेजी है इन जहाज पर एमिरेट्स की ब्रांडिंग की गई जब के पायलेट्स करू और इंजीनियर सब कुछ भी आई कहा था इन प्लांस को चलाया तो एमिरेट्स के नाम पे जाता था लेकिन मैनेजमेंट साड़ी पिया की थी और इस कम के बदले में दुबई के शेख ने पिया को 1 करोड़ अदा की है यानी जो कम साथ करोड़ डॉलर्स में होना था वही अब एक में हो गया एमिरेट्स की पहले फ्लाइट 25 अक्टूबर 1985 को दुबई से कराची तक गई इसके बाद मुंबई दिल्ली कोलंबो ओमान और करो जैसी डेस्टिनेशंस को भी शामिल किया गया एमिरेट्स के पहले ही साल में 260000 पैसेंजर ने सफर किया और इसी एक साल के दौरान शुरुआती 1 करोड़ की इन्वेस्टमेंट बाहर निकाल आई 1987 में जब एमिरेट्स ने खुद के एयरप्लेंस खरीद लिए तो पिया को उनके प्लांस वापस कर दिए गए 1990 की शुरुआत में गल्फ वार के दौरान जहां बाकी तमाम एयरलाइंस ने मेडलिस्ट के ऑपरेशंस बैंड कर दिए थे वही एमिरेट्स यह मौका अपने हाथ से नहीं कामना चाहती थी गल्फ वार के आखिरी 10 दोनों में मिडिल ईस्ट या अब कंट्रीज के दरमियां अगर कोई एयरलाइन ऑपरेट कर रही थी तो वो कोई और नहीं बल्कि एमिरेट्स ही थी इस दौरान एमिरेट्स ने उन पैसेंजर को भी टारगेट किया जो नॉर्मली कंपीटीटर्स एयरलाइंस को इस्तेमाल किया करते थे नए पेसेजंर्स ने एमिरेट्स में वह फैसेलिटीज भी पाएं जिसके लिए दूसरी एयरलाइंस एक्स्ट्रा चार्ज करती थी जैसा की पर्सनल एंटरटेनमेंट सिस्टम लग्जरी केबिन और बेहतरीन यह डांस एमिरेट्स को तरक्की नई ऊंचाइयों तक ले गया और बाद में लॉयल पैसेंजर के लिए एमिरेट्स ने स्काई अवार्ड प्रोग्राम भी लॉन्च किया अब इंटरनेशनल पैसेंजर के साथ साथ दुबई की बढ़नी हुई पापुलैरिटी ने भी एमिरेट्स एयरलाइंस की सक्सेस को नेक्स्ट लेवल तक पहुंच दिया बल्कि यह भी का सकते हैं की दुबई की पापुलैरिटी के पीछे भी काफी हद तक एमिरेट्स का ही हाथ रहा है वह ऐसे एक दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाला फ्लाइट रूट यूरोप तू साउथ ईस्ट एशिया और ऑस्ट्रेलिया है अगर यूरोप तू ऑस्ट्रेलिया की एग्जांपल ली जाए तो ये एक दूसरे से 14800 किमी दूर है ये इतना बड़ा डिस्टेंस कोई भी डायरेक्ट फ्लाइट कर नहीं कर शक्ति इसमें ज्यादातर फ्लाइट्स को कहानी ना कहानी रिफ्यूलिंग के लिए स्टॉप लेना पड़ता है इस रूट पर सबसे ज्यादा फायदा एमिरेट्स एयरलाइंस को होता है क्योंकि एमिरेट्स ने अपना हब दुबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट को बनाया हुआ है दूसरी फ्लाइट्स को जहां स्टोपोवर करने के लिए एयरपोर्ट्स को एक्स्ट्रा फी पे करनी पड़ती है वही एमिरेट्स पैसेंजर को दुबई में स्टॉप ओवर दे कर ना शरीफ अपनी कॉस्ट भी बजती है बल्कि पैसेंजर को भी कॉम्पिटेटिव रेट्स पे टिकट सेल कर शक्ति है और इससे दुबई में भी विजिटर्स का ट्रैफिक भरत है क्योंकि आफ्टर जो कई लोग आगे जान से पहले एक दो दिन दुबई में भी रहना पसंद करते हैं इसके अलावा प्लेन का फ्यूल टैंक अगर फूल होता है तो प्लेन की फ्यूल एफिशिएंसी कम हो जाति है क्योंकि एक्स्ट्रा फ्यूल का मतलब है एक्स्ट्रा वेट और एक्स्ट्रा वेट की वजह से प्लेन के इंजन को ज्यादा थ्रस्ट प्रोड्यूस करना पड़ता है जिसकी नतीजा में ज्यादा फ्यूल कंज्यूम होता है एमिरेट्स एयरलाइन का हब क्योंकि यूरोप एशिया और अफ्रीका के सेंटर में है इसी वजह से वो अपने प्लेन के टैंक्स फूल नहीं करते ताकि ज्यादा अच्छी फ्यूल एवरेज मिल पे इस तरह वो पैसेंजर को दुबई में एक्स्ट्रा 1 घंटे का स्टॉक देकर फ्यूल की मैड में काफी ऐसे भी बच्चा लेते हैं इसके वृक्ष दूसरी एयरलाइंस अगर दुबई में स्टॉप ओवर कॉस्ट बचाने की कोशिश करती है तो उनको प्लेन में एक्स्ट्रा फ्यूल डालना पड़ता है जिसे उनकी इकोनॉमिक्स बिगड़ जाति है एमिरेट्स की सक्सेस के पीछे सिर्फ उनकी मार्केटिंग और लाजवाब सर्विस ही नहीं बल्कि एक ऐसी स्ट्रीट्स भी है जिसको उन्होंने कई सालों तक दुनिया से छुपाई रखा और बस a380 आज दुनिया का सबसे बड़ा कमर्शियल जेट है एक वक्त में यह ₹850 पैसेंजर आसानी से बोर्ड कर लेट है पर हैरत की बात यह है की ज्यादातर एयरलाइंस जो एअरबस a380 इस्तेमाल कर रही है वो इस जॉइंट से प्रॉफिट नहीं काम रही सिर्फ एक ही एयरलाइन है जो एअरबस a380 से प्रॉफिट काम रही है और वो है एमिरेट्स एयरलाइन यहां तक के ऐसा माना जाता है की सिर्फ एमिरेट्स ही इस जेट को प्रॉफिटेबल बना रही है तो आखिर एमिरेट्स ऐसा क्या करती है जो दूसरी एयरलाइंस नहीं कर पाती ये राज एमिरेट्स ने कई सालों तक छुपा कर रखा लेकिन कोविड-19 पांडेमिक की वजह से जब और फ्रांस ने अपने a380 को रिटायर करने का फैसला किया तो इस मौके पर एमिरेट्स के सीईओ का कहना था की और फ्रांस को 10 एअरबस a380 इस खरीदने ही नहीं चाहिए थे क्योंकि इससे यूनिट मेंटेनेंस कॉस्ट बाढ़ जाति है एअरबस a380 एक बहुत ही जॉइंट एयरक्राफ्ट है जहां वो एक वक्त में इतने ज्यादा पैसेंजर सपोर्ट कर सकता है वही इसका सबसे बड़ा मसाला इसकी मेंटेनेंस कॉस्ट है एमिरेट्स के पास 119 a380 है और वो भी से मॉडल के 1995 में एमिरेट्स ने फैसला किया था की वो एक ही मॉडल के ज्यादा जहाज खरीदेंगे आज और बस a380 की कीमत 450 मिलियन डॉलर्स है जो की दुनिया का सबसे महंगा कमर्शियल जेट है लेकिन एक साथ ज्यादा जहाज खरीदने से डिस्काउंट भी ज्यादा मिलता एमिरेट्स एयरलाइन ने एअरबस के साथ बुक डील क्रैक की और इस तरह उनको यूनिट प्राइस में काफी डिस्काउंट मिला और तो और उन सबकी मेंटेनेंस के लिए भी एमिरेट्स ने अपना इन हाउस यूनिट बना रखा है इनके स्पेयर पार्ट्स भी सारे एक जैसे और एक साथ ऑर्डर किया जाते हैं और यहां पर भी एमिरेट्स अच्छी खासी सेविंग कर लेट है इसके बरक्स अगर दूसरी एयरलाइंस को देखा जाए तो ज्यादातर के पास अलग-अलग जेट मॉडल है और इसी डिफरेंस की वजह से वो मेंटेनेंस थर्ड पार्टी ऑपरेटर से करवाते हैं जिसका मतलब है की वो एक्स्ट्रा खर्च करते हैं आज एमिरेट्स दुनिया का सबसे बड़ा ना सिर्फ एअरबस a380 का ऑपरेटर है बल्कि बोईंग ट्रिपल सेवन की कलेक्शन में भी पहले नंबर पे आता है एमिरेट्स के पास 119 a380 और 148 बोईंग 777 है यहां तक के एअरबस a380 के जितने भी यूनिट्स दुनिया में मौजूद है उनका 50% सिर्फ एमिरेट्स ऑपरेट करता है यह मिडिल ईस्ट की सबसे बड़ी पैसेंजर पर किलोमीटर के हिसाब से दुनिया की चौथी और तन किलोमीटर के हिसाब से दुनिया की दूसरी बड़ी एयरलाइन कहलाए जाति है 1998 से लेकर आज तक 4000 अब पैसेंजर एमिरेट्स को इस्तेमाल कर चुके हैं और इसी पीरियड के दौरान एमिरेट्स 3.5 करोड़ तन का कार्गो डिलीवर कर चुका है ये दुनिया की वाहिद एयरलाइन है जो अपनी हिस्ट्री में कभी भी घाटे में नहीं गई देखा जाए तो हर साल इन्होंने 2007 करोड़ धर्म या फिर 5900 करोड़ का एवरेज प्रॉफिट रिकॉर्ड किया है और इसका सबसे बड़ा क्रेडिट किसी और को नहीं बल्कि दुबई के रोलर शेख मोहम्मद बिन राशिद अल मखदूम को ही जाता है.

By Naveen

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