मैं इंडिया के शहर आगरा में मुग़ल एंपायर के आर्किटेक्ट का एक ऐसा शाकाहार मौजूद है जिसको आज पूरी दुनियां ताजमहल के नाम से पहचानती है 42 एकड़ पर पहला दूर से ही चमकता हुआ यह मकबरा जहां अपने अंदर खूबसूरती के बगीचे सजाए हुए हैं वहीं इसके ऊपर हम और उदासी के कई बादल अभी तक मैला रहे हैं जब भी वीडियोस में एक बार फिर से खुशामदीद नाजरीन लगभग चार सौ साल पहले बनाई जाने वाली यह खूबसूरत बिल्डिंग जहां अपने दौर की सबसे बड़ी और सबसे शानदार बिल्डिंग हुआ करती थी वहीं आर इसको दुनिया का सातवां अजूबा भी माना जाता है इस आलीशान स्ट्रक्चर को बनाने में 20,000
मजदूरों ने दिन-रात खून पसीना बहाया और वह भी एक या दो सालों तक नहीं बल्कि पूरे भाई सालों तक अगर आज के दौर में इसकी कीमत का अंदाजा लगाया जाए तो संगमरमर का यह अनमोल मकबरा हैरतअंगेज़ तौर पर वन बिलीयन डॉलर जान 17 हजार करोड़ रुपए से भी ज्यादा महंगा है क्योंकि इस बिल्डिंग में मुगल आर्किटेक्चर ने अपने हुनर की कई ऐसी निशानियां छोड़ी थी जिनकी दुनिया के टॉप इंजिनियर्स भी आज तक तारीफ करते हैं इस बिल्डिंग को ऐसे डिज़ाइन किया गया कि जब मेन गेट के पीछे से इसको देखा जाता है तो यह काफी बड़ी रखती है लेकिन जैसे ही मेन गेट की तरफ बड़ा जाता है तो ऑटोमेटिकली
इसका साइज छोटा होता जाता है दिमाग को चकरा देने वाली यह कोई पहली ट्रिक नहीं थी जो मॉडल आर्किटेक्ट ने इस्तमाल की हो इसके विरुद्ध चारों मीनारों को बिल्कुल सीधा खड़ा नहीं किया गया बल्कि यह मिलाकर बाहर की तरफ थोड़ा झुके हुए हैं क्योंकि अगर इनको सीधा खड़ा किया जाता तो दूर से देखने पर यह अंदर की तरफ झुके हुए लगते जैसा के इन मस्जिदों में आप देख सकते हैं इन महिलाओं को बाहर की तरफ दुकानें का एक और रिवीजन भी था और वह यह था के खतरनाक अर्थक्वेक की सूरत में अगर यह मीनार भी तो यह बाहर की तरफ गिरकर ताजमहल पर एक आज भी ना आने दें लेकिन आखिर माजरा क्या था कि
इसको बनाने वाले एक किसी सूरत में इस पर एक खराश भी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे ताज महल के वह कौन-कौन से रात थे जिनको चार सौ साल पहले छुपाने की कोशिश की गई थी और जब उस दौर में कंक्रीट या स्टील ही नहीं हुआ करता था तो आखिर इस आलीशान मकबरे और इस पर मौजूद जारी इस मीटर ऊंचे डोंट को कैसे बनाया गया यह सब और इससे भी ज्यादा आप जान सकेंगे आज की इस स्पेशल वीडियो में नाजरीन यह मामला स्टार्ट हुआ था सन 1607 में जब इंडिया और पाकिस्तान के इस हफ्ते में मुग़ल एंपायर का होल्डर हुआ करता था इस दिन मुगल शहंशाह का सबसे छोटा बेटा शहाबुद्दीन मुहम्मद खुर्रम 15 साल का हो
चुका था और उसी की सेलिब्रेशन के लिए आगरा फोर्ट में एक आलीशान पार्टी रखी गई थी अ आज हम मुगल शहंशाह को सबसे ज्यादा अजीब था इसी वजह से इसके हर जन्मदिन पर इसको हीरे जवाहरात और सोने से तोला जाता था यानी जितना वजन शहजादे खुर्रम का होता था उतना ही खजाना इसके नाम कर दिया जाता था लेकिन इस जन्मदिन पर कुछ और भी खास होने वाला था मुगल शहंशाह ने शहजादे खुर्रम की शादी अपने एक वकील की बेटी के साथ कर दिए जिसको मुमताज़ महल के नाम से जाना जाता है मुमताज़ और हमको पहले दिन ही एक दूसरे से बेइंतहा मोहब्बत हो चुकी थी और उस वक्त यह
किसी को भी मालूम नहीं था कि इस मोहब्बत का बोलबाला हमेशा के लिए रहने वाला है अगले 10 सालों तक शहजादे ने कई जगह लड़ी और उन्हें भरपूर कामयाबी भी हासिल की इसी वजह से यह निशान है खुश होकर उनको शाहजहां के लक अब से नवाजा जिसका मतलब है दुनिया का बादशाह शाहजहां की Total 6 विद्यार्थी जो आगरा फोर्ट के अ में ही रहती थी इन छह में से शाहजहां सबसे ज्यादा मोहब्बत ममता से करते थे और यही वजह थी कि उनका ज्यादातर वक्त मुमताज़ महल के साथ ही गुजरता था वक्त तेजी से गुजरता जा रहा था और 4 सालों के बाद यानी 1621 में मुगल शहंशाह अचानक चल बसे शाहजहां जो पहले ही
मुगल एंपायर में खासा फेमस हो चुका था और जो शहंशाह का चहेता बेटा भी था 1628 में यानी बाप की मौत के साथ सालों बाद उसने शहंशाह की गति संभाल ली पुरे मुगलिया सल्तनत अपने नए शहंशाह से बेहद खुश नजर आती थी मुझे वह प्रिय था जब मुगल एंपायर अपने पूरे और रोज भर्ती यानी पूरे इंडिया पाकिस्तान के साथ-साथ अफगानिस्तान के भी कई हिस्सों में मुगलिया सल्तनत का राज हुआ करता था सारे फैसले शाहजहां खुद करता था जब के मुमताज़ महल पीछे रहकर शाहजहां को मशवरे दिया करती थी लेकिन कि हु इस बात का इल्म नहीं था कि यह खुशियां अनकरीब मातम में बदलने वाली है यदि संभाले अभी एक ही
साल उतरा था कि एक बार फिर से मुगल एंपायर को दुश्मनों का सामना करना पड़ा अगले 2 साल जंग चलती रही और शाहजहां को इस जंग में भी भरपूर कामयाबी नसीब कोई लेकिन जहां अभी इस कामयाबी का जश्न मनाते कि उनको एक अफसोसनाक खबर से आगाह किया गया मुमताज़ महल जो कि शाहजहां के चौक में बच्चे को जन्म दे रही थी उसकी हालत बिगड़ गई और 17 जून सन 1631 को वह ना चाहते हुए भी इस दुनिया से चल बसी पूरी मुगलिया सल्तनत का जशन देखते ही देखते मातम में बदल गया यह खबर जो शाहजहां पर आग बनकर गिरी थी उसने तो जैसे इनकी दुनिया ही खत्म कर डाली शाहजहां की सबसे पहली मोहब्बत और उनकी
सबसे अजीज भाई दम ताजमहल इस दुनिया से रुखसत हो चुकी थी कहा जाता है कि इस कि परचाई ने शाहजहां को काले अंधेरों में धकेल दिया था अगले आठ दिनों तक उन्होंने कुछ नहीं खाया और अगले दो सालों तक ना कोई मोसिकी सुनी और ना ही परफ्यूम लगाया मुमताजमहल ने मरने से पहले एक आखिरी ख्वाहिश की थी वह चाहती थी कि उनकी खबर दुनिया के सबसे खूबसूरत मकबरे में बनाई जाए इस टास्क को और मुमताज़ महल की आखिरी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए शाहजहां ने अपनी सारी दौलत और पूरी जिंदगी वक्त करने का इरादा कर लिया मुमताज के गुजरने के छह माह बाद यानी 1632 में ही ताजमहल की
कंस्ट्रक्शन का काम शुरू कर दिया गया करीब 20 हजार से भी ज्यादा मजदूर पत्थर तराश और कारीगरों को पूरी सल्तनत से इकट्ठा किया गया लंच करो कि क्लच कर शाहजहां के हुक्म पर आगरा बुलवा लिए गए थे क्योंकि मुमताज की कबर यमुना रिवर के बराबर में मौजूद थी इसी वजह से इस जगह पर दुनिया की सबसे खूबसूरत मीटिंग बनाना काफी मुश्किल रहा था रिवर के किनारे जमीन काफी सॉफ्ट होती है और अगर यहां खुदाई का काम किया गया तो पानी का बहाव ताजमहल की फाउंडेशन को भी नुकसान पहुंचा सकता था इस मसले से निपटने के लिए मुगल इंजीनियर्स ने यहां सबसे पहले जमीन के अंदर कई कुएं खुदवाना शुरू की है
मजदूर यह कुएं तब तक होते रहते जब तक उक्त जमीन नजर ना आ जाती थी इनको पत्थरों और गारे से भरा गया और फिर उसके ऊपर पत्थरों के बड़े-बड़े कॉलम्स खड़े किए गए इस सारे काम को अंजाम देने के लिए मजदूरों के साथ-साथ हाथियों की एक बहुत बड़ी फौज को भी इस्तेमाल किया गया मुगल इंजीनियर्स की यह ट्रिक काम कर चुकी थी और अब एक ऐसी मजबूत फाऊंडेशन तैयार थी जो नर्म जमीन पर भी फौलाद बनकर खड़ी थी फाउंडेशन के बाद अब बारी थी एक ऐसे बिल्डिंग डिजाइन की जो आज से पहले किसी ने भी ना देखा हो एक ऐसा डिजाइन जो पिछले सारे रेकॉर्ड तोड़ डाले ताजमहल के डिजाइन का idea शाहजहां ने अपने
बाप-दादा के मकबरों से लिया था बाप के मकबरे से मीनारों का आइडिया लिया गया दादा के मकबरे से बिल्डिंग कोर का आइडिया लिया और अपने अंकल के मकबरे से दोनों का आइडिया लिया था और जब इन सबको कंबाइन किया गया तो एक शानदार और आलिशान डिजाइन उभरकर सामने आया बिल्डिंग के स्ट्रक्चर को बनाने के लिए लाखों नहीं करोड़ों एंटर मौके पर ही बैक की गई यह सब इतना आसान नहीं था और इसमें लातादाद वैसे भी बहाए जा रहे थे हर गुजरते दिन शाही खजाना तेजी से खाली होता जा रहा था लेकिन शाहजहां को किसी चीज की परवाह नहीं थी बस उनको यह काम हर कीमत पर कंप्लीट करना था कहा जाता है कि ताजमहल की
कंजक्शन में इतने ज्यादा लोग लगाए गए थे कि इनकी वजह से आसपास के इलाकों में खाना पीना खत्म हो गया था 20 हजार मजदूरों और कारीगरों की डिमांड ठीक करने के लिए शाहजहां ने आसपास के तमाम इलाकों से अनाज आगरा मंगा लिया था कई सालों की मेहनत के बाद बिल्डिंग का स्ट्रक्चर कंपलीट हो चुका था और अब बारी थी इसको संगे मर मर से सजाने की यह संग-ए-मरमर आगरा से 400 किलोमीटर दूर राजस्थान से मंगाया जाना था क्योंकि यहां का मकराना मार्बल पांच तक दुनिया का फाइनस मार्बल माना जाता है शाहजहां ने ताजमहल के लिए पूरा मकराना मार्बल रिजर्व कर लिया था यानी जब तक ताजमहल की डिमांड पूरी नहीं हो पायेंगे तब तक किसी को भी यह मार्बल खरीदने की इजाजत नहीं थी एक हजार हाथियों की मदद से हजारों टन वजनी मार्बल राजस्थान से आगरा मंगाया गया ताजमहल का यह खूबसूरत ड्रम इतना बड़ा है कि इसका अंदाजा सिर्फ आंखों से देखकर ही लगाया जा सकता है आजकल इस तरह के ढेरों बड़ी आसानी से स्टील स्ट्रक्चर पर बनाए जा सकते हैं लेकिन चार साल पहले 40 मीटर ऊंचे चीन को बढ़ाने में उनके पास सिर्फ पत्रों का ही सहारा था इस ढूंढ को बनाने में मुगल इंजीनियर ने जो स्ट्रेस कैलकुलेशन की थी उसकी आज के इंजीनियर भी बहुत तारीफ करते हैं ताजमहल की पेंशन के लिए इसको पीट लाडूरा यहां पर जानकारी से डेकोरेट किया जाना था पेट लाडूरा एक ऐसी कलाकारी को कहा जाता है जिसमें कीमती पत्थर को मार्बल के अंदर तराशकर लगाया जाता है मार्कल को बड़ी महाव्रत और बारीकी से कीमती पत्थर की शेप के हिसाब से तराशा जाता है और फिर उसमें पत्थर को फॉलो के जरिए चिपकाया जाता है ताजमहल पर इस्तेमाल होने वाली ब्लू कोई आम क्यों नहीं थी काफी रिसर्च और लॉटरी टेस्ट के बाद मालूम पड़ा कि यह ग्रो शिरा लेमन जूस और संग-ए-मरमर पाउडर को मिलाकर बनाई जाती थी वही सेम गुरु आज भी ताजमहल की रेनोवेशन के लिए इस्तेमाल की जाती है
ताजमहल की खास बातों में एक बात यह भी है कि यह दिन में शुक्रवार मर्तबा अपने रंग भरता है सूरज निकलने से पहले यह बिल्कुल ब्लैक शेड देता है सूरज निकलने के बाद यह लाइट येलो और पिंक शेड देता है जबकि दोपहर के वक्त ताजमहल की खूबसूरती का नया रूप देखने को मिलता है नीले आसमान पर जैसे मोती चमक रहा हो और संत सेट के वक्त यह पूरी बिल्डिंग गोल्डन कलर की दिखाई देती है पूरे भाई सालों के बाद सन 1654 में ताजमहल की कंस्ट्रक्शन का काम मुकम्मल कर लिया गया शाहजहां अपनी बेगम की याद में दुनिया का सबसे खूबसूरत मकबरा बनाने में कामयाब हो चुका था शाहजहां ने इस आलीशान इमारत का नाम अपने पसंददीदा बीवी की याद में ही रखा मुमताज़ महल से इसका नाम ताजमहल रख दिया गया हर साल शाहजहां मुमताज की बरसी पर यमुना रिवर के जरिए ताजमहल पर दया करते थे यह ताजमहल की ऐसी एंट्रेंस थी जिसको सिर्फ शाही खानदान के लिए ही बनाया गया कि इस एंट्रेंस की दीवारों पर दिलकश नक्काशी का काम किया गया था जो शायद सिर्फ शाही आंखों के देखने के लिए ही किया गया था शाहजहां का यह महंगा तरीन प्रोजेक्ट कंपलीट हो चुका था लेकिन इसने मुगलिया सल्तनत को तबाही के किनारे पर ला खड़ा किया 4 सालों के बाद यानी 1658 में शाहजहां और मुमताज के अपने ही बेटे ने शाही तक उलट दिया और खुद मुग़ल एंपायर का शहंशाह बन गया शाहजहां जो पिछले तीन-चार सालों से इस तक पर राज कर रहे थे उसको कैदी बनाकर आगरा फोर्ट नहीं बंद कर दिया गया सिर्फ एक फैसिलिटी ऐसी थी जो शाहजहां को दी गई और वह यह थी कि जिस कमरे में उसको बंद किया गया था उसकी खिड़की से वह ताजमहल को देख सकते थे आठ साल कैद में रहने के बाद सात चार हेयर्स की एवज में शाहजहां भी इस दुनिया को अलविदा कर गए शाहजहां का अब ममता से दोबारा मिलने का वक्त आ चुका था और उन को ताजमहल में ही दफन कर दिया |